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भारत के खिलाफ ट्रंप का टैरिफ बनेगा अमेरिकियों के लिए गले की फांस, महंगी हो सकती हैं दवाएं

भारत के खिलाफ ट्रंप का टैरिफ बनेगा अमेरिकियों के लिए गले की फांस, महंगी हो सकती हैं दवाएं

अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाएं अकेले भारत से आती हैं। ये दवाएं ब्रांड नाम वाली दवाओं के मुकाबले काफी सस्ती होती हैं। अमेरिका में डॉक्टर मरीजों को जिन 10 दवाओं को लेने की सलाह देते हैं उनमें से नौ दवाएं भारत जैसे देशों से आयात की जाती हैं। इससे वाशिंगटन को स्वास्थ्य सेवा लागत में अरबों की बचत होती है।

भारत के खिलाफ ट्रंप का टैरिफ बनेगा अमेरिकियों के लिए गले की फांस (फोटो- ट्रंप, रॉयटर)

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अगले महीने से भारतीय वस्तुओं पर पारस्परिक कर (रेसिप्रोकल टैरिफ) लगाने की बात कही है। इस घोषणा के मद्देनजर माना जा रहा है कि भारत के खिलाफ ट्रंप का टैरिफ अमेरिकियों के लिए गले की फांस बन सकता है क्योंकि अमेरिका में दवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं। लाखों अमेरिकियों को अपनी दवा के लिए अधिक रकम चुकानी पड़ सकती है।


गौरतलब है कि पिछले सप्ताह वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने अधिकारियों के साथ चर्चा के लिए अमेरिका की एक अनिर्धारित यात्रा की थी। इस यात्रा का उद्देश्य व्यापार समझौते पर सहमति बनाना था।


दो अप्रैल से भारत पर भी जवाबी टैरिफ लगाएंगे ट्रंप
उनकी यह यात्रा ट्रंप की इस घोषणा के बाद हुई जब उन्होंने कहा था कि अमेरिकी वस्तुओं पर भारत के टैरिफ के जवाब में वह दो अप्रैल से भारत पर भी जवाबी टैरिफ लगाएंगे। हालांकि, दवाओं जैसे भारत के महत्वपूर्ण निर्यात उद्योगों पर कर की वृद्धि को गोयल रोकना चाहते हैं।

अमेरिका में इस्तेमाल होने वाली लगभग आधी जेनेरिक दवाएं अकेले भारत से आती हैं। ये दवाएं ब्रांड नाम वाली दवाओं के मुकाबले काफी सस्ती होती हैं। अमेरिका में डॉक्टर मरीजों को जिन 10 दवाओं को लेने की सलाह देते हैं, उनमें से नौ दवाएं भारत जैसे देशों से आयात की जाती हैं। इससे वाशिंगटन को स्वास्थ्य सेवा लागत में अरबों की बचत होती है।


जेनेरिक दवाओं से 219 बिलियन डॉलर की बचत हुई
कंसल्टिंग फर्म 'आईक्यूवीआईए' के एक अध्ययन के अनुसार, केवल 2022 में ही भारतीय जेनेरिक दवाओं से 219 बिलियन डॉलर की बचत हुई। विशेषज्ञों का कहना है कि व्यापार समझौते के बिना ट्रंप के टैरिफ कुछ भारतीय जेनेरिक दवाओं को अव्यवहारिक बना सकते हैं। इससे कंपनियों को बाजार से बाहर निकलने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है और मौजूदा दवा की कमी और बढ़ सकती है।

भारतीय दवा कंपनियों को भी लग सकता है झटका

ट्रेड रिसर्च एजेंसी - ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार, फार्मास्यूटिकल क्षेत्र भारत का सबसे बड़ा औद्योगिक निर्यात है। भारत सालाना लगभग 12.7 बिलियन डालर की दवाओं का निर्यात करता है, जिस पर लगभग कोई कर नहीं देना पड़ता। हालांकि, भारत में आने वाली अमेरिकी दवाओं पर 10.91 प्रतिशत शुल्क लगता है। अमेरिका द्वारा कोई भी पारस्परिक टैरिफ जेनेरिक दवाओं और विशेष दवाओं दोनों की लागत बढ़ाएगा।


भारतीय दवा कंपनियां बड़े पैमाने पर जेनेरिक दवाएं बेचती हैं
भारतीय दवा कंपनियां बड़े पैमाने पर जेनेरिक दवाएं बेचती हैं। वे पहले से ही कम मार्जिन पर काम करती हैं और वे भारी कर का खर्च वहन नहीं कर पाएंगी। वे प्रतिस्पर्धी कंपनियों की तुलना में बहुत कम कीमतों पर बेचती हैं। अतएव, वे दुनिया के सबसे बड़े फार्मा बाजार में हृदय, मानसिक स्वास्थ्य, त्वचाविज्ञान और महिलाओं के स्वास्थ्य की दवाओं में लगातार प्रभुत्व हासिल कर रही हैं।
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