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चुनावी नतीजे भाजपा- कांग्रेस के लिए सबक : 2.54 प्रतिशत वोटर्स को साध लेते तो हो सकता था तख्तापलट

चुनावी नतीजे भाजपा- कांग्रेस के लिए सबक : 2.54 प्रतिशत वोटर्स को साध लेते तो हो सकता था तख्तापलट


कुरुद का निकाय चुनाव भाजपा-कांग्रेस दोनों के लिए सबक बन गया है। यहां के महज 2.54 प्रतिशत वोटर्स को साध लेते तो तख्तापलट हो सकता था।


नपं कुरूद का परिणाम कांग्रेस- भाजपा के लिए बना सबक


यशवंत गंजीर- कुरुद। छत्तीसगढ़ के नगर पंचायत कुरुद का परिणाम भाजपा-कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए बहुत बड़ी सबक है। दोनों ही दल अगर यहां अच्छी एकजुटता दिखा चुनाव लड़े होते तो जीत का अंतर कुछ और ही होता। दोनों ही दल या प्रत्याशी महज 2.54 प्रतिशत मतदाताओं को और साध लेते तो यहां तख्तापलट के साथ परिणाम कुछ और होता। भाजपा हो या कांग्रेस दोनों ही दल पूर्ण बहुमत के साथ अध्यक्ष की कुर्सी में कब्जा करते।

निकाय चुनाव के तहत शनिवार को नपं. कुरुद की जनता ने यहां ऐसा जनादेश दिया है कि न तो भाजपा और न ही कांग्रेस खुलकर जश्न मना पा रहा है। परिणाम आने के बाद कुरुद में एक तरह से सन्नाटा है। परिणाम बता रहा है कि, महज ढाई प्रतिशत और मेहनत भाजपा-कांग्रेस दोनों दल को करने की जरूरत थी।

बहुत कम अंतर से हारी भाजपा

भाजपा को इस चुनाव में 44.79 , कांग्रेस को 42.25, आप को 0.72 तो वहीं निर्दलीय प्रत्याशी को 1.58 प्रतिशत वोट मिले है। भाजपा जिन वार्डों में हारी है वहां वोटों का अंतर बहुत कम है। वार्ड 1 में 4, वार्ड 3 और 4 में 10 तो वार्ड 15 में 14 है। वहीं कांग्रेस के पार्षद प्रत्याशियों को जहां अच्छी बढ़त मिली वहां अध्यक्ष प्रत्याशी को वोट कम मिले है। इनमें वार्ड 3, वार्ड 7 व वार्ड 12 शामिल है। अगर दोनों ही दल के नेता कार्यकर्ता इन मतदाताओं को साध लेते तो वार्ड पार्षद से लेकर अध्यक्ष की कुर्सी का सरताज कोई और होता।

नगर विकास और दल से परे व्यक्तित्व को मिला वोट

राजनीतिक विश्लेषकों की माने तो यहां न किसी दल का ग्राफ-गिरा है और न ही किसी का बढ़ा है। विकास कार्य दोनों ही दलों के लिए चुनाव में कोई खास फायदे-नुकसान नहीं दे गया है। एक दल में जहां पार्टी संगठन चुनाव लड़ रहा था तो दूसरे दल में खुद के बीते पांच साल में नगर में तैयार की गई संगठन के बल पर लड़े। पहले दल के संगठन के कुछ कार्यकर्ताओं ने खुले तौर पर तो कुछ ने दबी जुबान से प्रत्याशी चयन को गलत बताया। बगावत के तेवर भी अपना लिए थे। वहीं दूसरी ओर दूसरे दल में जिस व्यक्ति का विरोध था उनके ही द्वारा तैयार की गई टीम मैदान में उतरी जिसमें से ज्यादातर ने चुनाव जीत लिया। हालांकि इनके लिए भी पक्ष-विपक्ष ने कई माहौल बनाये पर संभव नहीं हो पाया।

दो चुनावों में दिखी गुटबाजी

भाजपा में पूर्व निकाय चुनाव में प्रत्याशी चयन को लेकर नाराजगी थी वहीं नाराजगी इस बार भी देखने को मिली। हालंकि दोनों बार पार्टी हाईकमान ने मामला को शांत कराया लिया था। लेकिन वह नाराजगी चुनाव परिणाम में आंतरिक गुटबाजी के रूप में दिखाई दे रही है। पिछले बार प्रदेश में सत्ता सरकार नहीं होने के कारण महज एक पार्षद जीतकर आये थे लेकिन इस बार सत्ता सरकार होने के बाद भी बहुमत नहीं जुटा पाये। वही हाल कांग्रेस का है लेकिन इसमें गुटबाजी, आंतरिक नही सार्वजनिक तौर पर दिख जाती है।

क्रॉस वोटिंग बनी हार का कारण

चुनाव निकाय का हो या विधानसभा का यहां खुले तौर पर चुनाव में साथ नही देने तक का आरोप लगते है। इस बार तो कुछ वार्डों में क्रॉस वोटिंग होने के कारण अध्यक्ष प्रत्याशी को हार का सामना करने की भी बात हो रही है। देखा जाये तो कांग्रेस संगठन चुनाव में तो उतार देती है लेकिन अपने प्रत्याशियों को चुनाव जिताने में साथ नहीं देती जिसका नतीजा है कि वे हर बार चुनाव हार रहे हैं।
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