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अंग्रेजों के युग की मानसिकता को दफना दें', सीजेआइ ने कहा- जिला अदालतें न्यायपालिका की रीढ़

अंग्रेजों के युग की मानसिकता को दफना दें', सीजेआइ ने कहा- जिला अदालतें न्यायपालिका की रीढ़

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने जिला अदालतों को न्यायपालिका की रीढ़ बताते हुए शनिवार को कहा कि अब हमें जिला अदालतों को अधीनस्थ अदालतें कहना बंद कर देना चाहिए। आगे सीजेआई ने कहा कि आजादी के 75 वर्ष बीतने के बाद अब समय आ गया है कि हम अंग्रेजों के युग की मानसिकता के एक और अवशेष को दफना दें।


सीजेआइ ने कहा- जिला अदालतें न्यायपालिका की रीढ़


HIGHLIGHTSअब हमें जिला अदालतों को अधीनस्थ अदालतें कहना बंद कर देना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट के 73 हजार फैसलों का हिंदी और अन्य भाषाओं में हो चुका है अनुवाद

प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने जिला अदालतों को न्यायपालिका की रीढ़ बताते हुए शनिवार को कहा कि अब हमें जिला अदालतों को अधीनस्थ अदालतें कहना बंद कर देना चाहिए। जिला अदालतें न्याय की तलाश कर रहे नागरिकों का पहला संपर्क बिंदु होती हैं। जिला अदालतें कानून के शासन (रूल आफ ला) का एक मुख्य घटक हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने जिला अदालतों के दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन समारोह में यह बात कही। प्रधान न्यायाधीश ने न्यायपालिका में जिला अदालतों की अहमियत को रेखांकित करते हुए कहा कि अगर लंबित मुकदमों के पिरामिड को देखा जाए तो आधार पर यह बड़ा होता है और जैसे-जैसे ऊपर की ओर बढ़ता है, पतला होता जाता है।

नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) का आंकड़ा बुनियादी सच्चाई उजागर करता है। जिला अदालतें कई लोगों के लिए न्याय का पहला बिंदु ही नहीं, बल्कि आखिरी बिंदु भी होती हैं। इसके बहुत से कारण हो सकते हैं। जैसे-बहुत से लोग ऊंची अदालत में कानूनी पैरवी में असमर्थ होते हैं।
अंग्रेजों के युग की मानसिकता को दफना दें


विधायी अधिकारों की जानकारी नहीं होती है या ऊंची अदालत तक पहुंचने में भौगोलिक दिक्कतें होती हैं। ऐसे में जिला न्यायपालिका के कंधों पर बहुत जिम्मेदारी होती है। इसीलिए इसे न्यायपालिका की रीढ़ कहा जाता है। कानूनी प्रणाली की रीढ़ को बनाए रखते हुए हमें जिला न्यायपालिका को अधीनस्थ न्यायपालिका कहना बंद करना होगा। आजादी के 75 वर्ष बीतने के बाद अब समय आ गया है कि हम अंग्रेजों के युग की मानसिकता के एक और अवशेष को दफना दें।

अदालत कक्ष कंप्यूटरीकृत हुए

प्रधान न्यायाधीश ने न्यायपालिका में तकनीक के बढ़ते उपयोग, आधुनिकीकरण और डिजिटलाइजेशन के आंकड़े भी पेश किए। उन्होंने बताया कि 2023-24 में 46.48 करोड़ पेज कोर्ट रिकॉर्ड का डिजिटलीकरण हुआ है। नेशनल ज्युडिशियल डाटा ग्रिड पर देशभर में लंबित मुकदमों का रियल टाइम डाटा उलब्ध है। 3,500 कोर्ट परिसर और 22 हजार से ज्यादा अदालत कक्ष कंप्यूटरीकृत हुए हैं। जिला अदालतों की कार्यवाही में तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
2.3 करोड़ मुकदमे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुने गए


आगे बोले कि देशभर की जिला अदालतों में 2.3 करोड़ मुकदमे वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये सुने गए। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हिंदी और अन्य भाषाओं में अनुवाद हो रहा है। अब तक 73 हजार फैसलों का अनुवाद हो चुका है जो सार्वजनिक हैं।


प्रधान न्यायाधीश ने बताया कि न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या लगातार बढ़ रही है। 2023 में राजस्थान में सिविल जज भर्ती में 58 प्रतिशत महिलाएं थीं। दिल्ली में 2023 में न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति में 66 प्रतिशत महिलाएं थीं। उत्तर प्रदेश में 2022 के बैच की सिविल जज जूनियर डिवीजन नियुक्ति में 54 प्रतिशत महिलाएं थीं और केरल में हुई ताजा भर्तियों में 72 प्रतिशत महिलाएं हैं।
कपिल सिब्बल ने कही ये बात


इस मौके पर सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष कपिल सिब्बल ने निचली अदालतों द्वारा जमानत देने में कोताही पर चिंता जताई और इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसलों और पूर्व में चीफ जस्टिस द्वारा की गई टिप्पणी का भी जिक्र किया।
संविधान का मजाक न बनाया जाए : मनन कुमार मिश्र


बार काउंसिल आफ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्र ने बगैर किसी का नाम लिए संविधान का मखौल बनाए जाने की बात कही। कहा कि संविधान की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। राजनीतिक लाभ के लिए संविधान का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। वोट के लिए अनभिज्ञ और अशिक्षित लोगों को गुमराह करने से राष्ट्र की स्थिरता को गंभीर खतरा पैदा हो रहा है।

उन्होंने संविधान की प्रति दिखाते हुए कहा कि इसका मखौल न उड़े। इसका मजाक न बनाया जाए। देश के संविधान, आरक्षण या लोकतंत्र को कोई खतरा नहीं है। देश को सही मायने में बेबुनियाद बयानबाजी से खतरा है, जो भोलीभाली जनता को बरगलाने का प्रयास करती है। उन्होंने कहा प्रधानमंत्री और भारत के प्रधान न्यायाधीश के हाथों में संविधान और आरक्षण सुरक्षित है। यह सुनिश्चित करना होगा कि निजी और राजनीतिक उद्देश्य से संविधान का दुरुपयोग न हो।
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