अब नहीं बेची जाएंगी सरकारी कंपनियां! निजीकरण को लेकर बदली सरकार की नीति
अब नहीं बेची जाएंगी सरकारी कंपनियां! निजीकरण को लेकर बदली सरकार की नीति
वित्त मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक सीपीएसयू के निजीकरण और विनिवेश को लेकर पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज पालिसी 2021 जो बनाई गई थी अभी वह ठंडे बस्ते में है। चुनाव की वजह से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण आसान नहीं है। हमेशा किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। राजनीतिक रूप से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण चुनौती भरा काम है।
वित्त मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक सीपीएसयू के निजीकरण और विनिवेश को लेकर पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज पालिसी 2021 जो बनाई गई थी अभी वह ठंडे बस्ते में है। चुनाव की वजह से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण आसान नहीं है। हमेशा किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। राजनीतिक रूप से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण चुनौती भरा काम है।
अब विनिवेश पर सरकार का फोकस नहीं।
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश बजट में केंद्रीय सार्वजनिक कंपनियों (सीपीएसयू) के विनिवेश और उनके निजीकरण को लेकर रोडमैप पेश किया गया था, जिसके तहत रणनीतिक सेक्टर को छोड़ अन्य सभी सेक्टर के पीएसयू के निजीकरण की घोषणा की गई थी। वित्त मंत्रालय ने तब आइडीबीआई बैंक के अलावा दो अन्य सरकारी बैंक और एक सरकारी बीमा कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव रखा था। लेकिन समय के साथ पिछले चार साल में सरकार की रणनीति बदल गई है।
अब सरकार विनिवेश या निजीकरण से पैसा जुटाने की जगह इन सार्वजनिक कंपनियों से कमाई का लक्ष्य तय कर रही हैं। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में विनिवेश या कंपनियों के निजीकरण से रकम प्राप्ति का कोई औपचारिक लक्ष्य नहीं रखा गया है। दूसरी तरफ, सीपीएसयू से चालू वित्त वर्ष में 56,260 करोड़ रुपये का लाभांश हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। 2023-24 में सीपीएसयू से लाभांश प्राप्ति का लक्ष्य 43,000 करोड़ रुपये था, जो संशोधित होने के बाद 50,000 करोड़ रुपये हो गया। अब इन सीपीएसयू से वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण में अपना अहम योगदान देने के लिए कहा जा रहा है।
अब विनिवेश पर फोकस नहीं
नई दिल्ली में बीते शुक्रवार को आयोजित सीपीएसयू के समीक्षा सम्मेलन में भारी उद्योग मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि पीएसयू हमारी अर्थव्यवस्था के आधार हैं जो वाणिज्यिक संस्था होने के साथ राष्ट्रीय परिसंपत्तियां भी हैं। यह महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा, सेवाएं और औद्योगिक क्षमताएं प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अगले कुछ वर्षों में भारत को शीर्ष तीन अर्थव्यवस्था में शामिल करने का लक्ष्य रखा है और इस काम में सीपीएसयू बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।
इस अवसर पर भारत हेवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड (भेल) समेत दर्जन भर उन सीपीएसयू ने अपनी आगे की तैयारी का प्रस्तुतिकरण दिया, जिन्हें कभी बेचने की चर्चा चलने लगी थी। समीक्षा सम्मेलन में इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स इंडिया लिमिटेड, सीमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एचएमटी लिमिटेड, एचएमटी इंटरनेशनल लिमिटेड, एचएमटी मशीन टूल्स लिमिटेड, हेवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड, नेपा लिमिटेड ने भी अपनी कार्ययोजना पेश की। इन कंपनियों का नाम भी कभी बिक्री की सूची में शामिल था।
ठंडे बस्ते में 2021 की नीति
वित्त मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, सीपीएसयू के निजीकरण और विनिवेश को लेकर पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज पालिसी 2021 जो बनाई गई थी, अभी वह ठंडे बस्ते में है। चुनाव की वजह से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण आसान नहीं है। हमेशा किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। राजनीतिक रूप से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण चुनौती भरा काम है। वर्ष 2021 में जब यह पालिसी लाई गई, उसके बाद कोरोना की वजह से वैश्विक सुस्ती का दौर शुरू हो गया।
उस दौरान कंपनियों के निजीकरण या विनिवेश से सरकार को उम्मीद के अनुरूप राशि नहीं मिलती। फिर यह सोचा गया कि सीपीएसयू संचालन की रणनीति बदल कर उसे आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाए और उससे लाभांश कमाया जाए। एअर इंडिया का निजीकरण पिछले चार साल में सबसे अहम रहा। अब आइडीबीआइ की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की तैयारी चल रही है, जिसे चालू वित्त वर्ष में अंजाम दिया जा सकता है।
वित्त वर्ष 2021-22 के लिए पेश बजट में केंद्रीय सार्वजनिक कंपनियों (सीपीएसयू) के विनिवेश और उनके निजीकरण को लेकर रोडमैप पेश किया गया था, जिसके तहत रणनीतिक सेक्टर को छोड़ अन्य सभी सेक्टर के पीएसयू के निजीकरण की घोषणा की गई थी। वित्त मंत्रालय ने तब आइडीबीआई बैंक के अलावा दो अन्य सरकारी बैंक और एक सरकारी बीमा कंपनी के निजीकरण का प्रस्ताव रखा था। लेकिन समय के साथ पिछले चार साल में सरकार की रणनीति बदल गई है।
अब सरकार विनिवेश या निजीकरण से पैसा जुटाने की जगह इन सार्वजनिक कंपनियों से कमाई का लक्ष्य तय कर रही हैं। चालू वित्त वर्ष 2024-25 में विनिवेश या कंपनियों के निजीकरण से रकम प्राप्ति का कोई औपचारिक लक्ष्य नहीं रखा गया है। दूसरी तरफ, सीपीएसयू से चालू वित्त वर्ष में 56,260 करोड़ रुपये का लाभांश हासिल करने का लक्ष्य रखा गया है। 2023-24 में सीपीएसयू से लाभांश प्राप्ति का लक्ष्य 43,000 करोड़ रुपये था, जो संशोधित होने के बाद 50,000 करोड़ रुपये हो गया। अब इन सीपीएसयू से वर्ष 2047 तक विकसित भारत के निर्माण में अपना अहम योगदान देने के लिए कहा जा रहा है।
अब विनिवेश पर फोकस नहीं
नई दिल्ली में बीते शुक्रवार को आयोजित सीपीएसयू के समीक्षा सम्मेलन में भारी उद्योग मंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि पीएसयू हमारी अर्थव्यवस्था के आधार हैं जो वाणिज्यिक संस्था होने के साथ राष्ट्रीय परिसंपत्तियां भी हैं। यह महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचा, सेवाएं और औद्योगिक क्षमताएं प्रदान करती हैं। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने अगले कुछ वर्षों में भारत को शीर्ष तीन अर्थव्यवस्था में शामिल करने का लक्ष्य रखा है और इस काम में सीपीएसयू बड़ी भूमिका निभा सकती हैं।
इस अवसर पर भारत हेवी इलेक्ट्रिक लिमिटेड (भेल) समेत दर्जन भर उन सीपीएसयू ने अपनी आगे की तैयारी का प्रस्तुतिकरण दिया, जिन्हें कभी बेचने की चर्चा चलने लगी थी। समीक्षा सम्मेलन में इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट्स इंडिया लिमिटेड, सीमेंट कारपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड, एचएमटी लिमिटेड, एचएमटी इंटरनेशनल लिमिटेड, एचएमटी मशीन टूल्स लिमिटेड, हेवी इंजीनियरिंग कारपोरेशन लिमिटेड, नेपा लिमिटेड ने भी अपनी कार्ययोजना पेश की। इन कंपनियों का नाम भी कभी बिक्री की सूची में शामिल था।
ठंडे बस्ते में 2021 की नीति
वित्त मंत्रालय सूत्रों के मुताबिक, सीपीएसयू के निजीकरण और विनिवेश को लेकर पब्लिक सेक्टर इंटरप्राइजेज पालिसी 2021 जो बनाई गई थी, अभी वह ठंडे बस्ते में है। चुनाव की वजह से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण आसान नहीं है। हमेशा किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहते हैं। राजनीतिक रूप से भी सरकारी कंपनियों का निजीकरण चुनौती भरा काम है। वर्ष 2021 में जब यह पालिसी लाई गई, उसके बाद कोरोना की वजह से वैश्विक सुस्ती का दौर शुरू हो गया।
उस दौरान कंपनियों के निजीकरण या विनिवेश से सरकार को उम्मीद के अनुरूप राशि नहीं मिलती। फिर यह सोचा गया कि सीपीएसयू संचालन की रणनीति बदल कर उसे आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाए और उससे लाभांश कमाया जाए। एअर इंडिया का निजीकरण पिछले चार साल में सबसे अहम रहा। अब आइडीबीआइ की 60 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की तैयारी चल रही है, जिसे चालू वित्त वर्ष में अंजाम दिया जा सकता है।
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