कौन हैं जामनगर के 'गुड महाराजा', बचाई थी हजारों यहूदी बच्चों और महिलाओं की जान, पोलैंड में क्यों लगी है उनकी प्रतिमा?
कौन हैं जामनगर के 'गुड महाराजा', बचाई थी हजारों यहूदी बच्चों और महिलाओं की जान, पोलैंड में क्यों लगी है उनकी प्रतिमा?
Digvijaysinhji Ranjitsinhji Jadeja पीएम मोदी ने पौलैंड की राजधानी वॉरसॉ में जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को श्रद्धांजलि अर्पित की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महाराजा जाम साहेब ने यहूदी बच्चों की जान बचाई थी। उन्होंने न सिर्फ पोलैंड से भारत आए कई यहूदी बच्चों की जान बचाईई थी बल्कि एक संरक्षक के तौर पर उनकी देखभाल भी की थी।
Digvijaysinhji Ranjitsinhji Jadeja पीएम मोदी ने पौलैंड की राजधानी वॉरसॉ में जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को श्रद्धांजलि अर्पित की। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान महाराजा जाम साहेब ने यहूदी बच्चों की जान बचाई थी। उन्होंने न सिर्फ पोलैंड से भारत आए कई यहूदी बच्चों की जान बचाईई थी बल्कि एक संरक्षक के तौर पर उनकी देखभाल भी की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पैलेंड दौरा काफी खास रहा। किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह 45 साल बाद पहली पोलैंड यात्रा था। इस दौरे के जरिए पीएम मोदी ने द्विपक्षीय संबंधों को पुनर्जीवित करने की पूरी कोशिश की। वहीं, वो वॉरसॉ स्थित जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा मेमोरियल (Digvijaysinhji Ranjitsinhji Jadeja) पर पहुंचे। उन्होंने जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को श्रद्धांजलि अर्पित की।
जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को पौलेंड में काफी सम्मान दिया जाता है। आइए जानते हैं कि आखिर दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा ने पेलौंड के लोगों के लिए ऐसा क्या किया था, जिसके लिए आज भी वहां के लोग उनका इतना आदर-सम्मान करते हैं। वहीं, आखिर लोग उन्हें 'गुड महाराजा' के नाम से क्यों बुलाते हैं।
जब पोलैंड से जान बचाकर भागे हजारों लोग
दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा गुजरात के जामनगर इलाके के महराज थे। उन्हें जानसाहब कहकर भी बुलाया जाता था। दरअसल साल 1939 से लेकर 1945 तक हुए द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से पोलैंड पूरी तरह तबाह हो चुका था। जर्मनी की सेना लगातार पोलैंड पर हमला कर रही थी। वहां, के आम लोग खुद की जान बचाने के लिए दूसरे देश भाग रहे थे।
इसी तरह 1942 में जहाज में सवार होकर हजारों लोगों का एक जत्था पोलैंड से बाहर निकला। उस जत्थे में ज्यादातर यहूदी महिलाएं और बच्चे थे। जहाज में बैठे लोग इस उम्मीद से पोलैंड से निकल पड़े थे कि उन्हें जहां शरण मिलेगा वो रक जाएंगे।
महाराज दिग्विजयसिंहजी ने दी हजारों यहूदी लोगों को शरण
जहाज तुर्की, सेशेल्स, ईरान समेत कई देश पहुंचा लेकिन कई लोगों को शरण नहीं मिली। ज्यादतर देशों को डर था कि अगर वो यहूदी लोगों को शरण देंगे तो उन्हें हिटलर के गुस्से का सामना करना होगा।
कई देशों से गुजरकर आखिरकार जहाज भारत के नवागर (जामनगर) तट पहुंचा। जैसे ही उस समय के जामनगर के महाराज दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को इस बात का पता चला। वो बिना किसी के परवाह किए पोलैंड से आए लोगों की मदद करने पहुंचे।
उन्होंने सभी लोगों के खाने-रहने का इंतजाम किया। नवागर के महाराजा ने विस्थापित बच्चों के लिए अपना समर पैलैस खुलवा दिया था। इसी वजह से दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को पोलैंड में इतना सम्मान मिलता है।
लेफ्टिनेंट जनरल रह चुके थे महाराजा
18 सितंबर 1895 को जन्मे जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा के चाचा जाम साहेब रणजीतसिंहजी एक अच्छे क्रिकेटर थे। उन्होंने भारत और ब्रिटेन में शिक्षा हासिल की। वो लेफ्टिनेंट जनरल पद पर भी रह चुके थे। वे भारतीय राजनीति में भी सक्रिय थे और संविधान सभा के सदस्य के रूप में भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने में भूमिका निभाई थी।
जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को पौलेंड में काफी सम्मान दिया जाता है। आइए जानते हैं कि आखिर दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा ने पेलौंड के लोगों के लिए ऐसा क्या किया था, जिसके लिए आज भी वहां के लोग उनका इतना आदर-सम्मान करते हैं। वहीं, आखिर लोग उन्हें 'गुड महाराजा' के नाम से क्यों बुलाते हैं।
जब पोलैंड से जान बचाकर भागे हजारों लोग
दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा गुजरात के जामनगर इलाके के महराज थे। उन्हें जानसाहब कहकर भी बुलाया जाता था। दरअसल साल 1939 से लेकर 1945 तक हुए द्वितीय विश्व युद्ध की वजह से पोलैंड पूरी तरह तबाह हो चुका था। जर्मनी की सेना लगातार पोलैंड पर हमला कर रही थी। वहां, के आम लोग खुद की जान बचाने के लिए दूसरे देश भाग रहे थे।
इसी तरह 1942 में जहाज में सवार होकर हजारों लोगों का एक जत्था पोलैंड से बाहर निकला। उस जत्थे में ज्यादातर यहूदी महिलाएं और बच्चे थे। जहाज में बैठे लोग इस उम्मीद से पोलैंड से निकल पड़े थे कि उन्हें जहां शरण मिलेगा वो रक जाएंगे।
महाराज दिग्विजयसिंहजी ने दी हजारों यहूदी लोगों को शरण
जहाज तुर्की, सेशेल्स, ईरान समेत कई देश पहुंचा लेकिन कई लोगों को शरण नहीं मिली। ज्यादतर देशों को डर था कि अगर वो यहूदी लोगों को शरण देंगे तो उन्हें हिटलर के गुस्से का सामना करना होगा।
कई देशों से गुजरकर आखिरकार जहाज भारत के नवागर (जामनगर) तट पहुंचा। जैसे ही उस समय के जामनगर के महाराज दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को इस बात का पता चला। वो बिना किसी के परवाह किए पोलैंड से आए लोगों की मदद करने पहुंचे।
उन्होंने सभी लोगों के खाने-रहने का इंतजाम किया। नवागर के महाराजा ने विस्थापित बच्चों के लिए अपना समर पैलैस खुलवा दिया था। इसी वजह से दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा को पोलैंड में इतना सम्मान मिलता है।
लेफ्टिनेंट जनरल रह चुके थे महाराजा
18 सितंबर 1895 को जन्मे जाम साहेब दिग्विजयसिंहजी रंजीतसिंहजी जडेजा के चाचा जाम साहेब रणजीतसिंहजी एक अच्छे क्रिकेटर थे। उन्होंने भारत और ब्रिटेन में शिक्षा हासिल की। वो लेफ्टिनेंट जनरल पद पर भी रह चुके थे। वे भारतीय राजनीति में भी सक्रिय थे और संविधान सभा के सदस्य के रूप में भारतीय संविधान का मसौदा तैयार करने में भूमिका निभाई थी।
Labels
Desh
Post A Comment
No comments :