'दस साल काम किया फिर भी नहीं बढ़ा वेतन' बेंगलुरु के प्रोफेसर ने दिया इस्तीफा; मायूस होकर किया दर्द भरा पोस्ट
'दस साल काम किया फिर भी नहीं बढ़ा वेतन' बेंगलुरु के प्रोफेसर ने दिया इस्तीफा; मायूस होकर किया दर्द भरा पोस्ट
सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर इस्तीफे से जुड़े पोस्ट वायरल होते रहते हैं। इसी बीच बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में 10 सालों तक पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर ने अपनी आपबीती सुनाई है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने दस साल तक कॉलेज के लिए सब कुछ किया बदले में उन्हें संस्थान से कुछ नहीं मिला। प्रोफेसर के पोस्ट पर कई यूजर्स ने प्रतिक्रियाएं दी है।
सोशल मीडिया के अलग-अलग प्लेटफॉर्म्स पर इस्तीफे से जुड़े पोस्ट वायरल होते रहते हैं। इसी बीच बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में 10 सालों तक पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर ने अपनी आपबीती सुनाई है। उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने दस साल तक कॉलेज के लिए सब कुछ किया बदले में उन्हें संस्थान से कुछ नहीं मिला। प्रोफेसर के पोस्ट पर कई यूजर्स ने प्रतिक्रियाएं दी है।
इंजीनियरिंग कॉलेज में 10 सालों तक पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर ने सुनाई आपबीती।
बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में 10 सालों तक पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़ने की खबर सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है। 37 वर्षीय असिस्टेंट प्रोफेसर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट के जरिए दावा किया कि संस्थान में 10 साल पढ़ाने के बाद अपने छात्रों से हमेशा पॉजिटिव फीडबैक मिलने के बावजूद संस्थान ने आज तक उनकी सैलरी नहीं बढ़ाई।
असिस्टेंट प्रोफेसर ने सुनाई अपनी आपबीती
रेडिट पर पोस्ट के जरिए प्रोफेसर ने अपनी आपबीती सुनाई है। उन्होंने पोस्ट में लिखा,"मैंने संस्थान के लिए सब कुछ किया मुझे जो भी काम दिया गया वो मैंने किया। मैंने कभी भी किसी काम के लिए ना नहीं किया। हालांकि, मुझे इसके बदले कुछ नहीं मिला। इतना ही नहीं मैंने जब मैंने नौकरी से इस्तीफे दिया तो मुझे रोकने की कोशिश भी नहीं की गई।"
पोस्ट में प्रोफेसर ने लिखा,"नमस्ते बेंगलुरु! मैं पूर्वी बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहा था। मैं पिछले 10 सालों से यहां था। 2019 तक सब कुछ सामान्य था। 2019 में आए नए प्रिंसिपल ने हमारे कॉलेज की 3 शाखाएं बंद कर दीं। मैंने संस्थान के लिए सब कुछ किया और मैंने कभी किसी काम के लिए मना नहीं किया, लेकिन वेतन बढ़ाने के मेरे अनुरोध को कभी मंजूरी नहीं मिली।"
'मैं छात्रों के लिए देर तक कॉलेज में रुकता था'
उन्होंने कहा, "छात्र मेरे पढ़ाने से खुश थे। मुझे अपने छात्रों से लगातार बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली। मैं हैकथॉन और प्रतियोगिताओं में छात्रों की मदद कर रहा था। कई बार मैंने कई प्रतियोगिताओं के लिए अपनी जेब से प्रवेश शुल्क का भुगतान किया। एनबीए और एनएएसी मान्यता के दौरान, मैं शाम को 8-9 बजे तक कॉलेज में रहता था। हम रविवार को भी काम करते थे।"
उन्होंने आगे लिखा,"इस दुनिया में ईमानदारी और वफादारी का कोई मतलब नहीं है।"
प्रिंसिपल ने नहीं सुनी मेरी कोई बात: असिस्टेंट प्रोफेसर
प्रोफेसर ने आगे दावा किया कि जूनियर शिक्षकों को उनसे अधिक वेतन मिल रहा था। उन्होंने लिखा, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं क्या गलती कर रहा हूं। पूरा कॉलेज जानता था कि मैं क्या कर रहा हूं,लेकिन हमारे प्रिंसिपल इसे मानने के लिए तैयार नहीं थे। प्रोफेसर ने कहा कि इस्तीफा देने से पहले उन्होंने प्रिंसिपल से बात की थी, लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी।
लोगों ने किया असिस्टेंट प्रोफेसर को सपोर्ट
प्रोफेसर ने आगे ये भी कहा कि सैलरी स्ट्रक्चर में अचानक बदलाव के बाद कोई ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) भी नहीं दिया गया। प्रोफेसर के इस पोस्ट पर यूजर्स ने कमेंट किए। वहीं पोस्ट पर 1,000 से ज्यादा लाइक्स भी मिले। वहीं, कई यूजर्स ने पोस्ट पर कमेंट भी किए। एक यूजर ने लिखा, ईपीएफ ने देना गैर-कानूनी है।
वहीं, एक अन्य यूजर ने लिखा,"यह दुखद है कि आपके साथ ऐसा हुआ। यह अन्याय है, मुझे लगता था कि शिक्षण संस्थान सुरक्षित हैं और इस तरह की प्रथाओं से मुक्त हैं। यह दुनिया दिन प्रतिदिन क्रूर और बुरी होती जा रही है। अच्छे लोगों की कोई कीमत नहीं रह गई है। मेरा मानना है कि अब आप नई नौकरी में बेहतर और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं।"
बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में 10 सालों तक पढ़ाने वाले असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी छोड़ने की खबर सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है। 37 वर्षीय असिस्टेंट प्रोफेसर ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म रेडिट के जरिए दावा किया कि संस्थान में 10 साल पढ़ाने के बाद अपने छात्रों से हमेशा पॉजिटिव फीडबैक मिलने के बावजूद संस्थान ने आज तक उनकी सैलरी नहीं बढ़ाई।
असिस्टेंट प्रोफेसर ने सुनाई अपनी आपबीती
रेडिट पर पोस्ट के जरिए प्रोफेसर ने अपनी आपबीती सुनाई है। उन्होंने पोस्ट में लिखा,"मैंने संस्थान के लिए सब कुछ किया मुझे जो भी काम दिया गया वो मैंने किया। मैंने कभी भी किसी काम के लिए ना नहीं किया। हालांकि, मुझे इसके बदले कुछ नहीं मिला। इतना ही नहीं मैंने जब मैंने नौकरी से इस्तीफे दिया तो मुझे रोकने की कोशिश भी नहीं की गई।"
पोस्ट में प्रोफेसर ने लिखा,"नमस्ते बेंगलुरु! मैं पूर्वी बेंगलुरु के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम कर रहा था। मैं पिछले 10 सालों से यहां था। 2019 तक सब कुछ सामान्य था। 2019 में आए नए प्रिंसिपल ने हमारे कॉलेज की 3 शाखाएं बंद कर दीं। मैंने संस्थान के लिए सब कुछ किया और मैंने कभी किसी काम के लिए मना नहीं किया, लेकिन वेतन बढ़ाने के मेरे अनुरोध को कभी मंजूरी नहीं मिली।"
'मैं छात्रों के लिए देर तक कॉलेज में रुकता था'
उन्होंने कहा, "छात्र मेरे पढ़ाने से खुश थे। मुझे अपने छात्रों से लगातार बेहतरीन प्रतिक्रिया मिली। मैं हैकथॉन और प्रतियोगिताओं में छात्रों की मदद कर रहा था। कई बार मैंने कई प्रतियोगिताओं के लिए अपनी जेब से प्रवेश शुल्क का भुगतान किया। एनबीए और एनएएसी मान्यता के दौरान, मैं शाम को 8-9 बजे तक कॉलेज में रहता था। हम रविवार को भी काम करते थे।"
उन्होंने आगे लिखा,"इस दुनिया में ईमानदारी और वफादारी का कोई मतलब नहीं है।"
प्रिंसिपल ने नहीं सुनी मेरी कोई बात: असिस्टेंट प्रोफेसर
प्रोफेसर ने आगे दावा किया कि जूनियर शिक्षकों को उनसे अधिक वेतन मिल रहा था। उन्होंने लिखा, मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं क्या गलती कर रहा हूं। पूरा कॉलेज जानता था कि मैं क्या कर रहा हूं,लेकिन हमारे प्रिंसिपल इसे मानने के लिए तैयार नहीं थे। प्रोफेसर ने कहा कि इस्तीफा देने से पहले उन्होंने प्रिंसिपल से बात की थी, लेकिन उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी।
लोगों ने किया असिस्टेंट प्रोफेसर को सपोर्ट
प्रोफेसर ने आगे ये भी कहा कि सैलरी स्ट्रक्चर में अचानक बदलाव के बाद कोई ईपीएफ (कर्मचारी भविष्य निधि) भी नहीं दिया गया। प्रोफेसर के इस पोस्ट पर यूजर्स ने कमेंट किए। वहीं पोस्ट पर 1,000 से ज्यादा लाइक्स भी मिले। वहीं, कई यूजर्स ने पोस्ट पर कमेंट भी किए। एक यूजर ने लिखा, ईपीएफ ने देना गैर-कानूनी है।
वहीं, एक अन्य यूजर ने लिखा,"यह दुखद है कि आपके साथ ऐसा हुआ। यह अन्याय है, मुझे लगता था कि शिक्षण संस्थान सुरक्षित हैं और इस तरह की प्रथाओं से मुक्त हैं। यह दुनिया दिन प्रतिदिन क्रूर और बुरी होती जा रही है। अच्छे लोगों की कोई कीमत नहीं रह गई है। मेरा मानना है कि अब आप नई नौकरी में बेहतर और मानसिक रूप से स्वस्थ हैं।"
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