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हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : एक से दूसरे राज्य में जाने वाला व्यक्ति नहीं ले सकता आरक्षण का लाभ

हाईकोर्ट का बड़ा फैसला : एक से दूसरे राज्य में जाने वाला व्यक्ति नहीं ले सकता आरक्षण का लाभ


हाईकोर्ट ने कहा है कि, एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास करने वाला अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति, दूसरे या प्रवासित राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता।


हाईकोर्ट बिलासपुर

बिलासपुर। हाईकोर्ट ने एक बड़े फैसले में कहा है कि एक राज्य से दूसरे राज्य में प्रवास करने वाला अनुसूचित जनजाति का व्यक्ति, दूसरे या प्रवासित राज्य में आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता। हाईकोर्ट ने कहा है कि यदि यह अनिवार्य प्रवास नहीं है तो इसे मान्य नहीं किया जाएगा। हाईकोर्ट ने कहा है कि इस आरक्षण के तहत लिए गए लाभ भी मान्य नहीं होंगे और सरकार उसे रद्द कर सकती है। हाईकोर्ट ने इस फैसले को एप्रूव फोर रिर्पोटिंग (एएफआर) के तौर पर दर्ज करने कहा है। हाईकोर्ट के जस्टिस एन के व्यास की सिंगल बेंच ने इसके साथ ही जाति प्रमाण पत्र की छानबीन समिति के फैसले को सही माना है और सुरेश कुमार डगला, आलोक कुमार डगला और पुष्पा डगला की याचिका खारिज कर दी है।
इन तीनों के जाति प्रमाण पत्र को छानबीन समिति ने फर्जी पाया था। इसी के खिलाफ हाईकोर्ट में अपील की गई थी। ध्यान रहे कि सुरेश कुमार और आलोक कुमार डगला छत्तीसगढ़ सरकार में संयुक्त कलेक्टर रहे शंकर लाल डगला के पुत्र हैं तो पुष्पा डगला उनकी पत्नी हैं। ध्यान रहे कि साल 2000 से 2020 तक फर्जी जाति प्रमाण पत्र का उपयोग कर नौकरी हासिल करने वालों में, डिप्टी कलेक्टर और डीएसपी रैंक तक के ऑफिसर शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों ने अनुसूचित जनजाति वर्ग का ही फर्जी जाति प्रमाण पत्र बनवाकर नौकरी हासिल की है। इस मामले में लगातार शिकायत हुई थी कि ऐसी गड़बड़ी कर आदिवासियों का हक छीना जा रहा है। गौरतलब है कि प्रदेश में वर्ष 2001 में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के जरिये सरकारी नौकरी हासिल करने का पहला मामला प्रकाश में आया। इसके बाद साल 2002 में 4, वर्ष 2004 में 2, वर्ष 2005 में 10, 2006 में 5, 2007 में 21, 2008 में 8, वर्ष 2009 में 6, 2010 में 6 व इसके अलावा वर्ष 2011 से लेकर वर्ष 2020 तक में 186 प्रकरण फर्जी जाति प्रमाण पत्र के सामने आए।

267 मामलों में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए गए

मामले को लेकर सरकार द्वारा गठित की गई उच्च स्तरीय छानबीन समिति को साल 2000 से लेकर 2020 तक 758 मामले फर्जी जाति प्रमाणपत्र के प्राप्त हुए। इसमें 659 प्रकरणों की जांच के बाद इसका निराकरण किया गया। 267 मामलों में जाति प्रमाण पत्र फर्जी पाए - गए। जिनकी सूची संबंधित विभाग को कार्रवाई के लिए भेजी गई। इनमें से सिर्फ एक कर्मचारी की ही सेवा समाप्त की गई, बाकी 13 मामले अभी विभागीय स्तर पर अटके हैं। जिन बड़े अधिकारियों की जाति प्रमाण पत्र को छानबीन समिति ने फर्जी माना उनमें संयुक्त कलेक्टर शंकर लाल डगला और उनके बेटे सुरेश कुमार डगला के नाम भी शामिल हैं।

दोषियों को बर्खास्त किया जाना चाहिए

हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता रत्नेश अग्रवाल ने बताया कि, फर्जी प्रमाणपत्र के आधार पर नौकरी करना एक बड़ा अपराध है, जिसके लिए दोषियों को बर्खास्त किया जाना चाहिए। ऐसा करके इन्होंने आदिवासी समाज के बेरोजगारों का हक भी छीना है, इसलिए धारा 420 के तहत इनके खिलाफ मामला दर्ज किया जाए। इनसे सरकारी पैसे जो इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अर्जित किए हैं उसे भी वापस लिया जाए, तभी ऐसी गड़बड़ी करने से लोग परहेज करेंगे।

इस विभाग में जमे हैं इतने फर्जी अफसर

■ स्कूल शिक्षा विभाग-44
■ पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग-15
■सामान्य प्रशासन विभाग-14
■ कृषि विभाग-14
■ग्रामोद्योग विभाग-12
■ जल संसाधन विभाग-14
■ लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग और चिकित्सा शिक्षा विभाग-9
■ आदिम जाति विभाग-8
■ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग-8
■राजस्व विभाग-7
■ गृह विभाग-7
■ ऊर्जा विभाग-7
■ पशुधन और मछली पालन विभाग-6
■ कौशल विकास, तकनीकी शिक्षा एवं रोजगार विभाग-5
■ नगरीय प्रशासन विभाग-5
■ वन विभाग-5
■ महिला एवं बाल विकास विभाग-4
■ वाणिज्य एवं उद्योग विभाग-4
■ सहकारिता विभाग-3
■ उच्च शिक्षा विभाग-3
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