विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर बोले नीति आयोग के सदस्य, राज्यों की समस्याओं के व्यावहारिक समाधान की जरूरत
विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर बोले नीति आयोग के सदस्य, राज्यों की समस्याओं के व्यावहारिक समाधान की जरूरत
लोकसभा चुनाव के बाद से बिहार और आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के मांग चर्चा में है। केंद्र में एनडीए की सरकार में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू महत्वपूर्ण भूमिका में है इस वजह से भी इस मांग ने एक बार फिर से जोर पकड़ा है। लेकिन नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी का मानना है कि राज्यों की राज्यों के समस्याओं का व्यावहारिक समाधान ढूंढना चाहिए।
1969 में हुई थी विशेष राज्य के दर्जे की शुरुआत
'विशेष दर्जा' श्रेणी की शुरुआत 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर पहाड़ी इलाकों, रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और आर्थिक और बुनियादी ढांचे में पिछड़ेपन वाले कुछ पिछड़े राज्यों को लाभ पहुंचाने के लिए की गई थी।
'यह एक जटिल मुद्दा है'
विरमानी ने कहा, 'ऐसी समितियां और आयोग हैं जिन्होंने (राज्यों के लिए) विशेष राज्य के दर्जे के लिए मानदंड निर्धारित करने का प्रयास किया है। यह एक जटिल मुद्दा भी है।' अर्थशास्त्री ने कहा कि पिछले 30-40 वर्षों में 'हमारे यहां 'बीमारू' राज्य हुआ करते थे। मिसाल के तौर पर ओडिशा ने बहुत विकास किया है, राजस्थान ने भी बहुत प्रगति की है और चीजें बदल गई हैं। जहां तक मुझे पता है, इनमें से किसी भी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं मिला है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है।'
आंध्र प्रदेश 2014 में अपने विभाजन के बाद से राजस्व हानि के आधार पर विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है। बिहार भी 2005 से विशेष दर्जे की मांग कर रहा है। नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
लोकसभा चुनाव के बाद से बिहार और आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने के मांग चर्चा में है। केंद्र में एनडीए की सरकार में नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू महत्वपूर्ण भूमिका में है इस वजह से भी इस मांग ने एक बार फिर से जोर पकड़ा है। लेकिन नीति आयोग के सदस्य अरविंद विरमानी का मानना है कि राज्यों की राज्यों के समस्याओं का व्यावहारिक समाधान ढूंढना चाहिए।
Special Category Status नीति आयोग (NITI Aayog) के सदस्य अरविंद विरमानी (Arvind Virmani) ने राज्यों के सामने आनी वाली समस्याओं का 'व्यावहारिक' समाधान खोजने की बुधवार को वकालत की। उन्होंने कहा कि राजस्थान तथा ओडिशा जैसे राज्यों ने विशेष श्रेणी का दर्जा प्राप्त किए बिना भी अच्छा प्रदर्शन किया है। विरमानी ने कहा कि लोकतंत्र में विशिष्ट समस्याओं को पहचानना और व्यावहारिक समाधान ढूंढने की जरूरत होती है। वह बिहार और आंध्र प्रदेश को 'विशेष श्रेणी का दर्जा' (एससीएस) दिए जाने के मुद्दे पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे।
1969 में हुई थी विशेष राज्य के दर्जे की शुरुआत
'विशेष दर्जा' श्रेणी की शुरुआत 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर पहाड़ी इलाकों, रणनीतिक अंतरराष्ट्रीय सीमाओं और आर्थिक और बुनियादी ढांचे में पिछड़ेपन वाले कुछ पिछड़े राज्यों को लाभ पहुंचाने के लिए की गई थी।
'यह एक जटिल मुद्दा है'
विरमानी ने कहा, 'ऐसी समितियां और आयोग हैं जिन्होंने (राज्यों के लिए) विशेष राज्य के दर्जे के लिए मानदंड निर्धारित करने का प्रयास किया है। यह एक जटिल मुद्दा भी है।' अर्थशास्त्री ने कहा कि पिछले 30-40 वर्षों में 'हमारे यहां 'बीमारू' राज्य हुआ करते थे। मिसाल के तौर पर ओडिशा ने बहुत विकास किया है, राजस्थान ने भी बहुत प्रगति की है और चीजें बदल गई हैं। जहां तक मुझे पता है, इनमें से किसी भी राज्य को विशेष श्रेणी का दर्जा नहीं मिला है। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि यह महत्वपूर्ण नहीं है।'
आंध्र प्रदेश 2014 में अपने विभाजन के बाद से राजस्व हानि के आधार पर विशेष राज्य का दर्जा मांग रहा है। बिहार भी 2005 से विशेष दर्जे की मांग कर रहा है। नीतीश कुमार ने 2005 में मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
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