चुनावी संवाद : मोदी भाजपा के सुपर ट्रंप कार्ड हैं, और संगठन का इस्तेमाल भाजपा जैसा कोई नहीं कर सकता
चुनावी संवाद : मोदी भाजपा के सुपर ट्रंप कार्ड हैं, और संगठन का इस्तेमाल भाजपा जैसा कोई नहीं कर सकता
Exclusive : एक्सिस माइ इंडिया के सीईओ से हरिभूमि और आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने 'सार्थक संवाद' शो में ख़ास बातचीत । यहां देखें वीडियो
Exclusive : एक्सिस माइ इंडिया के सीईओ से हरिभूमि और आईएनएच के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी ने 'सार्थक संवाद' शो में ख़ास बातचीत । यहां देखें वीडियो
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एक्सिस माइ इंडिया के सीईओ से आईएनएच-हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी का चुनावी संवाद
रायपुर। एक्सिस माई इंडिया के फाउंडर, सीईओ एवं मैनेजिंग डायरेक्टर प्रदीप गुप्ता का कहना है कि देश में दो प्रमुख मुद्दे महंगाई और बेरोजगारी के हैं। ये मुद्दे 50 साल पहले भी थे और 50 साल बाद भी रहेंगे। इसमें अंतर कम ज्यादा हो सकता है। भाजपा के संगठन के संबंध में उनका कहना है कि आज भी संगठन का इस्तेमाल बीजेपी जैसा कोई पार्टी नहीं कर पाती है, न ही कर सकेगी। उसकी कल्पना भी कोई पार्टी नहीं कर सकती है। संगठन ऐसी चीज है, जो छिपा रहता है, वोटर को पोलिंग बूथ तक लेकर आता है। उन्होंने इस चुनाव के नरेंद्र मोदी केंद्रित होने पर कहा, श्री मोदी भाजपा के सुपर ट्रंप कार्ड हैं। मतलब कि जनता उन्हें मानती है और स्वीकार करती है। यह भाजपा समझती है। श्री गुप्ता ने यह बात चुनावी संवाद कार्यक्रम में आईएनएच हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी से कही। बातचीत के प्रमुख अंश।
■ 2014 जब देश ने स्पष्ट जनादेश दिया था एक पार्टी के संदर्भ में, 2019 जब वह जनादेश बरकरार रहा बल्कि उस पार्टी के नेता के संदर्भ में कुछ बढ़कर दिखा, अब 2024 क्या उसी दिशा में कुछ देख रहे हैं आप या कुछ बदलाव की आहट सुनाई दी है आपको इस दौरान।
■ एक्सिस माई इंडिया में हम लोग ओपिनियन पोल और प्री पोल करते नहीं, खासकर इस समय चुनाव आयोग की हमारी जैसी एजेंसियों पर पाबंदी लगी होती है कि हम किसी भी तरह का एग्जिट पोल या उसी तरह का अनुमान लगाने की कोशिश न करें, न रिलीज करें न बात करें। तो बड़ी विनम्रता से इस मामले में सबसे माफी चाहता हूं। हर चुनाव के मामले में मेरा ऐसा मानना है कि तीन चीजों के इर्द-गिर्द चुनाव घूमता है, कोई भी चुनाव हो। वो है दावे, वादे और इरादे। दावे वो हैं जो सरकार में हैं वो तरह तरह के दावे बताएंगे कि लोगों के जीवन में ये सकारात्मक परिवर्तन लाया। और वादे वो हैं जो विपक्षी पार्टी हैं उनके पास तो कोई च्वाईस नहीं है वो जो वादे करेंगे कि वो नई नई चीज लोगों के लिए लेकर आएंगे। इन वादों पर जनता अपने इरादे जताती है। जिनको भी वह उपयुक्त पाती है उनके ट्रैक रिकार्ड के आधार पर, उसको वो चुनकर भेजते हैं और अपना निर्णय करते हैं। ये एक चुनावी प्रक्रिया होती है।
■ कुछ राज्यों में बीजेपी चरम पर है
इसके अंदर ही सारी बातें हैं कि कौन उपयुक्त आज की डेट में, जनता के नजरिए से, ये हम जानने की कोशिश करते हैं, हर एक राज्य की अपना एक राजनीतिक परिदृश्य होता है और एक राजनीतिक समीकरण होते हैं, उसके आधार पर लोग अपना निर्णय लेते हैं। जैसा हम जानते हैं कि भारत देश काफी बड़ा है। हमने इसको तीन हिस्से में बांटने की कोशिश की। खासकर 2019 के परिणाम की दृष्टि से। एक ग्रुप ऐसे राज्यों का है जिसमें बीजेपी को करीब 257 सीटें मिली थी। इनमें से 94 परसेंट , इनमें से केवल 19 सीटें विपक्षी पार्टियों ने जीतीं थी। तो करीब 238 सीटें 257 में से बीजेपी या एनडीए को मिली थी। ये वो राज्य हैं जहां भाजपा चरम पर हैं जैसे गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, इसमें करीब 100 परसेंट या 99 परसेंट सीटें बीजेपी ने जीती थी।
■ दूसरी श्रेणी में बीजेपी 60 फीसदी सीटों पर
दूसरी श्रेणी राज्यों की वो है जिसने बीजेपी को करीब 60 प्रतिशत सीटें दी। ये सीटें करीब 195 हैं। ये मुख्य राज्य हैं, उत्तर प्रदेश, बंगाल, ओडिशा। उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हैं, 64 सीटे एनडीए को मिली थी। बंगाल में 42 सीटें है, 18 सीटें बीजेपी को मिली थी। ओडिशा में 21 में 8 सीटें। कहने का मतलब यहां पर कुछ एलबो रूम बचता है विपक्षियों के लिए भी और बीजेपी के लिए भी अपने प्रदर्शन को कुछ अच्छा करें।
■ तीसरी श्रेणी में विपक्ष के पास 95 फीसदी सीटें
■तीसरा जो ग्रुप है जहां वो राज्य हैं जहां बीजेपी या एनडीए नहीं विपक्षियों को अधिक सीटें मिली 95 परसेंट। ये वो राज्य हैं केरल, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश और पंजाब। इन 105 सीटों पर बीजेपी की दो और उस समय के सहयोगी एआईडीएमके की एक और अकाली दल की दो। इस तरह पांच सीटें आईं थी। यहां पर बीजेपी के हिसाब से काफी स्कोप हैं इम्पूवाईजेशन का। अपोजिशन को इन सीटों को बरकरार रखना है। इंडिया को 2019 के परिणाम के हिसाब से डिवाईड करना। अलग-अलग पार्टियां अपने-अपने हिसाब से कोशिश करेंगी। आज पांच फेज के चुनाव हो चुके हैं। 427 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। एक सीट सूरत वैसे ही डिक्लेयर हो चुकी है। तो कहने का मतलब जो 115 सीटें रह गई हैं। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि जो पहले दो चरण थे। अब हम 2024 की बात कर लें। उसमें ये दो बड़े राज्य थे, तमिलनाडू, केरला और नार्थ इस्र्स्टन स्टेट। जिसके अंदर करीब 80 सीटें ऐसी हैं जिसमें बीजेपी का परफारमेंस उतना अच्छा नहीं था। वहा इमपूवाईजेश की जरुरत है। अब बात करते हैं आगे के जो दो फेज बचे हैं उसमें दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश में इर्स्टन यूपी और बंगाल ओडिशा और झारखंड़। अब ये जो सीटें हैं इनमें बीजेपी को काफी कुछ इम्पुवाइजेशन की जरूरत है और गुंजाईश है। ये वो राज्य है जहां उनका परफारमेंस पिछले बार अच्छा था। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब ऐसा है जिसमें दो सीटें थी।
■ मैं आपसे एक बात समझना चाहता हूं 2014 और 2024 के संदर्भ में। इस बार भारतीय जनता पार्टी में पार्टी से कहीं अधिक फोकस नरेंद्र मोदी के नाम पर है। मोदी की गारंटी पर बात हो रही है। भारतीय जनता पार्टी की फिर से सरकार, मोदी सरकार की बात हो रही है। साफ तौर पर दिख रहा है कि पार्टी को संगठन से ज्यादा भरोसा व्यक्ति पर हो रहा है। इस बदलाव पर आपकी भी दृष्टि है, और अगर ये बदलाव है तो आप इसे किस तरह देख पा रहे हैं।
■ 2014 में ये तो अपोजिशन में थे, 2014 का कंपेरिजन 2024 में नहीं है। उस समय अलग परिदृश्य था अभी अलग है। 2019 में जरुर सेम था। जब कोई प्रोडक्ट लगातार डिलेवरी करता है, सक्सेजफुली डिलेवरी करता रहे, इसे मैं इस तरह बताता हूं कि आईपीएल में जो व्यक्ति लगातार डिलेवरी करता रहे जैसे कि धोनी। 2008 में जब आईपीएल शुरु हुआ तब से वे हैं। बाकी सब बदले गए। लेकिन कहने का मतलब ये है कि जो व्यक्ति लगातार डिलेवरी देता रहे चुनाव जीतता रहे। 2014 में उन्होंने जो दिया 2019 में प्रूव हो गया। जो चुनाव होते हैं। अगर कोई सरकार रिपीट हो रही है तो केवल इस बात पर निर्भर होता है कि सरकार का परफॉरमेंस कैसा था। उसके आधार पर जनता वोट देती है। और जब विपक्ष में होते हैं और सरकार में आते हैं तो उस समय की सरकार का परफारमेंस खराब रहा होगा। इसलिए आपको मौका मिला। 2019 की बात करें तो इसमें आप रिपीट हुए और पहले से ज्यादा वोटों से। इसका मतलब ये है कि जो व्यक्ति सर्वेसर्वा है उसे सारी की सारी जनता मानती है। उसके फेवर में जनता खड़ी हुई है। इसलिए यह बीजेपी के लिए सुपर ट्रंप कार्ड हो गया। संगठन तो है ही। एक है ब्रांड और दूसरी ब्रांड इक्विटी। जब संगठन न हो जैसे केरला और तमिलनाडू में संगठन है ही नहीं है बीजेपी का। उसे अब डेवलप करने की कोशिश कर रहे हैं। इतना बड़ा देश है और राज्य। 10 से 15 साल लगता डेवलप करने के लिए।। जैसे ग्रेज्युएशन करने के लिए लिए 12 और तीन साल लगते हैं वैसे ही देश में स्टेबलिश होने के लिए समय लगता है। कार्यकर्ता लोगों को वोट डालने के लिए तैयार करते हैं और पोलिंग बूथ तक ले जाते हैं। जब तक वोट न करे तब हो तो आपकी ब्रांड इक्विटी काम नहीं करती है। तो उसके लिए संगठन चाहिए। आज भी संगठन का इस्तेमाल बीजेपी जैसा कोई पार्टी नहीं कर पाती है। न ही कर सकेगी। उसकी कल्पना। संगठन ऐसी चीज है जो छिपा रहता है।
■ 2014-19 में जो मुद्दे थे, 2024 में जो मुद्दे हैं, । 2014 में भी दस साल की यूपीए सरकार दांव पर थी। उसके कामकाज के आधार पर बात हो रही थी। क्या 2024 में क्या महसूस कर रहे है कि इनके दस साल के कामकाज पर बात हो रही थी। या आप महसूस कर रहे हैं कि कामकाज कोई मुद्दा नहीं है। मुद्दे कुछ और ही हो गए हैं। तो क्यों हो गए हैं।
■ कामकाज की कोई बात कोई भी नेता चाहे वो पक्ष के हों या विपक्ष के, बीजेपी की बात कर ले। आज 40 से 45 डिग्री की गर्मी में भाषण होता है स्पीच होता है रैली होती। नेताओं को एक्रास द सेक्शन यानी हर जाति वर्ग समुदाय उम्र जेंडर, सब को उनको टच करना है। इतने सारे कम्युनिटी, इतने सारे विषय है डेमोग्राफी और ज्योग्राफी कहते हैं, उन सब के महत्व की बात करनी है, ये क्लीयर है। सबका वोट चाहिए। टीवी का ऐसा है जब तक कोई सनसनी न हो, ऐसा विषय न हो जिसे सब देखना और सुनना न चाहें, तब तक टीवी पर उसे बखान नहीं किया जाता तो, मेरा बोलने का मतलब ये है कि उन 40 मिनट की स्पीच में 35 मिनट तक केवल डिलेवरी की बात हो रही है। वो तमाम तरह की योजनाए गिना रहे हैं। बीजेपी वालों की अगर बात करूं तो पांच मिनट में ऐसा भी होता है कि डिलेवरी के अलाव जो इमोशनल मुद्दे हैं, राष्ट्रीय मुद्दे हैं उनकी भी चर्चा करते हैं।
■ आपने 2014 और 2019 का भाषण भी देखा है मोदी जी का। अभी 2024 का भी देख रहे हैं। कुछ बदलाव है, कमिटमेंट के संर्दभ में एचिवमेंट के संर्दभ में, अगर बदलाव है तो आप क्या बदलाव देख पा रहे हैं।
■ पहले बदलाव था कि आपने 60 साल कांग्रेस को दिए 60 महीने मुझे दे दीजिए और देखिए मैंने गुजरात में जो परिवर्तन किया है सकारात्मक, वो मैं आपके, देश के संदर्भ में करना चाहता हूं। ये एक बेसिक थीम थी इसके ईद-गिर्द सारा हुआ। और उस समय इनकंबेंट गवर्नमेंट मनमोहन सिंह जी की थी। ये तो प्रॉमिस वाली बात थी उन्होंने प्रॉमिस किया कि आप मुझे 60 महीने दीजिए, आपने कांग्रेस को 60 साल दिए। ये प्लॉट के उपर वो गए। सौ वोट जो मशीन में पड़ते हैं वो सौ वोट में से 80 परसेंट का जीवन गर्वमेंट ऑफ द डे पर निर्भर करते है। डायरेक्ट या इन डायरेक्ट। उसका सिंपल सा कारण है कि 70 परसेंट रुरल है और 30 परसेंट अर्बन है। अर्बन का मतलब आठ मेट्रो या अरबन सिटी या 100 मेजर सिटी नहीं है। 6 हजार 500 जहां अर्बन नगर पालिकाएं हैं और नगर निगम हैं, वो क्लासीफाय होते हैं। अर्बन के शहरी क्षेत्र में। वो कांट्रिब्यूट करते हैं 30 परसेंट जनता को। 80 परसेंट लोगों का जीवन उस सरकार पर निर्भर करता है। 50 करोड़ के नए बैंक अकांउट खुले। 2014 से 2019 के दौरान। इंदिरा आवास योजना पहले से थी इंदिरा गांधी के जमाने से। उसमें जो स्पीड और स्केल आई है उसका कोई मुकाबला नहीं है।
■ बेरोजगारी और महंगाई हमेशा रहेंगी
■ वो ठीक है कि आप लोग कहते हैं कि बालाकोट हो गया। मैं बिल्कुल मानने को तैयार नहीं हूं। बालाकोट न भी होता तो परिणाम 325 सीटों के आसपास सीटें आती। 10-15 सीटें आप कम कर सकते हैं। बालाकोट का कोई लेना देना नहीं है। वोट शेयर और जीत के नंबर में अंतर हो सकता है। 2024 के चुनाव में भी वो बोल रहे हैं कि विकसित भारत की बात करी है। वहीं से शुरुआत करी है कि मेरे पास 2047 तक का प्लान है। अभी तक मैंने आपको बेसिक सुख सुविधा देने की कोशिश की है। आपके जीवन में हमेश दो बातें रहेंगी, एक बेरोजगारी, दूसरी महंगाई। ये जो दो मुद्दे हैं जो 50 साल पहले भी थे और 50 साल बाद भी रहेंगे। हां इसमें अंतर कम ज्यादा हो सकता है। ये तो गई मुद्दों की बातें। विकसित भारत का मतलब क्या है, इसे वे अलग अलग रैली में समझा रहे हैं कि सब लोगों के जीवन में संपन्नता आ जाए। उसी को तो डेवलप कंट्री कहते हैं।
एक्सिस माइ इंडिया के सीईओ से आईएनएच-हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी का चुनावी संवाद
रायपुर। एक्सिस माई इंडिया के फाउंडर, सीईओ एवं मैनेजिंग डायरेक्टर प्रदीप गुप्ता का कहना है कि देश में दो प्रमुख मुद्दे महंगाई और बेरोजगारी के हैं। ये मुद्दे 50 साल पहले भी थे और 50 साल बाद भी रहेंगे। इसमें अंतर कम ज्यादा हो सकता है। भाजपा के संगठन के संबंध में उनका कहना है कि आज भी संगठन का इस्तेमाल बीजेपी जैसा कोई पार्टी नहीं कर पाती है, न ही कर सकेगी। उसकी कल्पना भी कोई पार्टी नहीं कर सकती है। संगठन ऐसी चीज है, जो छिपा रहता है, वोटर को पोलिंग बूथ तक लेकर आता है। उन्होंने इस चुनाव के नरेंद्र मोदी केंद्रित होने पर कहा, श्री मोदी भाजपा के सुपर ट्रंप कार्ड हैं। मतलब कि जनता उन्हें मानती है और स्वीकार करती है। यह भाजपा समझती है। श्री गुप्ता ने यह बात चुनावी संवाद कार्यक्रम में आईएनएच हरिभूमि के प्रधान संपादक डॉ. हिमांशु द्विवेदी से कही। बातचीत के प्रमुख अंश।
■ 2014 जब देश ने स्पष्ट जनादेश दिया था एक पार्टी के संदर्भ में, 2019 जब वह जनादेश बरकरार रहा बल्कि उस पार्टी के नेता के संदर्भ में कुछ बढ़कर दिखा, अब 2024 क्या उसी दिशा में कुछ देख रहे हैं आप या कुछ बदलाव की आहट सुनाई दी है आपको इस दौरान।
■ एक्सिस माई इंडिया में हम लोग ओपिनियन पोल और प्री पोल करते नहीं, खासकर इस समय चुनाव आयोग की हमारी जैसी एजेंसियों पर पाबंदी लगी होती है कि हम किसी भी तरह का एग्जिट पोल या उसी तरह का अनुमान लगाने की कोशिश न करें, न रिलीज करें न बात करें। तो बड़ी विनम्रता से इस मामले में सबसे माफी चाहता हूं। हर चुनाव के मामले में मेरा ऐसा मानना है कि तीन चीजों के इर्द-गिर्द चुनाव घूमता है, कोई भी चुनाव हो। वो है दावे, वादे और इरादे। दावे वो हैं जो सरकार में हैं वो तरह तरह के दावे बताएंगे कि लोगों के जीवन में ये सकारात्मक परिवर्तन लाया। और वादे वो हैं जो विपक्षी पार्टी हैं उनके पास तो कोई च्वाईस नहीं है वो जो वादे करेंगे कि वो नई नई चीज लोगों के लिए लेकर आएंगे। इन वादों पर जनता अपने इरादे जताती है। जिनको भी वह उपयुक्त पाती है उनके ट्रैक रिकार्ड के आधार पर, उसको वो चुनकर भेजते हैं और अपना निर्णय करते हैं। ये एक चुनावी प्रक्रिया होती है।
■ कुछ राज्यों में बीजेपी चरम पर है
इसके अंदर ही सारी बातें हैं कि कौन उपयुक्त आज की डेट में, जनता के नजरिए से, ये हम जानने की कोशिश करते हैं, हर एक राज्य की अपना एक राजनीतिक परिदृश्य होता है और एक राजनीतिक समीकरण होते हैं, उसके आधार पर लोग अपना निर्णय लेते हैं। जैसा हम जानते हैं कि भारत देश काफी बड़ा है। हमने इसको तीन हिस्से में बांटने की कोशिश की। खासकर 2019 के परिणाम की दृष्टि से। एक ग्रुप ऐसे राज्यों का है जिसमें बीजेपी को करीब 257 सीटें मिली थी। इनमें से 94 परसेंट , इनमें से केवल 19 सीटें विपक्षी पार्टियों ने जीतीं थी। तो करीब 238 सीटें 257 में से बीजेपी या एनडीए को मिली थी। ये वो राज्य हैं जहां भाजपा चरम पर हैं जैसे गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, हरियाणा, छत्तीसगढ़, इसमें करीब 100 परसेंट या 99 परसेंट सीटें बीजेपी ने जीती थी।
■ दूसरी श्रेणी में बीजेपी 60 फीसदी सीटों पर
दूसरी श्रेणी राज्यों की वो है जिसने बीजेपी को करीब 60 प्रतिशत सीटें दी। ये सीटें करीब 195 हैं। ये मुख्य राज्य हैं, उत्तर प्रदेश, बंगाल, ओडिशा। उत्तर प्रदेश में 80 सीटें हैं, 64 सीटे एनडीए को मिली थी। बंगाल में 42 सीटें है, 18 सीटें बीजेपी को मिली थी। ओडिशा में 21 में 8 सीटें। कहने का मतलब यहां पर कुछ एलबो रूम बचता है विपक्षियों के लिए भी और बीजेपी के लिए भी अपने प्रदर्शन को कुछ अच्छा करें।
■ तीसरी श्रेणी में विपक्ष के पास 95 फीसदी सीटें
■तीसरा जो ग्रुप है जहां वो राज्य हैं जहां बीजेपी या एनडीए नहीं विपक्षियों को अधिक सीटें मिली 95 परसेंट। ये वो राज्य हैं केरल, तमिलनाडू, आंध्र प्रदेश और पंजाब। इन 105 सीटों पर बीजेपी की दो और उस समय के सहयोगी एआईडीएमके की एक और अकाली दल की दो। इस तरह पांच सीटें आईं थी। यहां पर बीजेपी के हिसाब से काफी स्कोप हैं इम्पूवाईजेशन का। अपोजिशन को इन सीटों को बरकरार रखना है। इंडिया को 2019 के परिणाम के हिसाब से डिवाईड करना। अलग-अलग पार्टियां अपने-अपने हिसाब से कोशिश करेंगी। आज पांच फेज के चुनाव हो चुके हैं। 427 सीटों पर चुनाव हो चुके हैं। एक सीट सूरत वैसे ही डिक्लेयर हो चुकी है। तो कहने का मतलब जो 115 सीटें रह गई हैं। मैं लोगों को बताना चाहता हूं कि जो पहले दो चरण थे। अब हम 2024 की बात कर लें। उसमें ये दो बड़े राज्य थे, तमिलनाडू, केरला और नार्थ इस्र्स्टन स्टेट। जिसके अंदर करीब 80 सीटें ऐसी हैं जिसमें बीजेपी का परफारमेंस उतना अच्छा नहीं था। वहा इमपूवाईजेश की जरुरत है। अब बात करते हैं आगे के जो दो फेज बचे हैं उसमें दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तर प्रदेश में इर्स्टन यूपी और बंगाल ओडिशा और झारखंड़। अब ये जो सीटें हैं इनमें बीजेपी को काफी कुछ इम्पुवाइजेशन की जरूरत है और गुंजाईश है। ये वो राज्य है जहां उनका परफारमेंस पिछले बार अच्छा था। दिल्ली, हरियाणा, पंजाब ऐसा है जिसमें दो सीटें थी।
■ मैं आपसे एक बात समझना चाहता हूं 2014 और 2024 के संदर्भ में। इस बार भारतीय जनता पार्टी में पार्टी से कहीं अधिक फोकस नरेंद्र मोदी के नाम पर है। मोदी की गारंटी पर बात हो रही है। भारतीय जनता पार्टी की फिर से सरकार, मोदी सरकार की बात हो रही है। साफ तौर पर दिख रहा है कि पार्टी को संगठन से ज्यादा भरोसा व्यक्ति पर हो रहा है। इस बदलाव पर आपकी भी दृष्टि है, और अगर ये बदलाव है तो आप इसे किस तरह देख पा रहे हैं।
■ 2014 में ये तो अपोजिशन में थे, 2014 का कंपेरिजन 2024 में नहीं है। उस समय अलग परिदृश्य था अभी अलग है। 2019 में जरुर सेम था। जब कोई प्रोडक्ट लगातार डिलेवरी करता है, सक्सेजफुली डिलेवरी करता रहे, इसे मैं इस तरह बताता हूं कि आईपीएल में जो व्यक्ति लगातार डिलेवरी करता रहे जैसे कि धोनी। 2008 में जब आईपीएल शुरु हुआ तब से वे हैं। बाकी सब बदले गए। लेकिन कहने का मतलब ये है कि जो व्यक्ति लगातार डिलेवरी देता रहे चुनाव जीतता रहे। 2014 में उन्होंने जो दिया 2019 में प्रूव हो गया। जो चुनाव होते हैं। अगर कोई सरकार रिपीट हो रही है तो केवल इस बात पर निर्भर होता है कि सरकार का परफॉरमेंस कैसा था। उसके आधार पर जनता वोट देती है। और जब विपक्ष में होते हैं और सरकार में आते हैं तो उस समय की सरकार का परफारमेंस खराब रहा होगा। इसलिए आपको मौका मिला। 2019 की बात करें तो इसमें आप रिपीट हुए और पहले से ज्यादा वोटों से। इसका मतलब ये है कि जो व्यक्ति सर्वेसर्वा है उसे सारी की सारी जनता मानती है। उसके फेवर में जनता खड़ी हुई है। इसलिए यह बीजेपी के लिए सुपर ट्रंप कार्ड हो गया। संगठन तो है ही। एक है ब्रांड और दूसरी ब्रांड इक्विटी। जब संगठन न हो जैसे केरला और तमिलनाडू में संगठन है ही नहीं है बीजेपी का। उसे अब डेवलप करने की कोशिश कर रहे हैं। इतना बड़ा देश है और राज्य। 10 से 15 साल लगता डेवलप करने के लिए।। जैसे ग्रेज्युएशन करने के लिए लिए 12 और तीन साल लगते हैं वैसे ही देश में स्टेबलिश होने के लिए समय लगता है। कार्यकर्ता लोगों को वोट डालने के लिए तैयार करते हैं और पोलिंग बूथ तक ले जाते हैं। जब तक वोट न करे तब हो तो आपकी ब्रांड इक्विटी काम नहीं करती है। तो उसके लिए संगठन चाहिए। आज भी संगठन का इस्तेमाल बीजेपी जैसा कोई पार्टी नहीं कर पाती है। न ही कर सकेगी। उसकी कल्पना। संगठन ऐसी चीज है जो छिपा रहता है।
■ 2014-19 में जो मुद्दे थे, 2024 में जो मुद्दे हैं, । 2014 में भी दस साल की यूपीए सरकार दांव पर थी। उसके कामकाज के आधार पर बात हो रही थी। क्या 2024 में क्या महसूस कर रहे है कि इनके दस साल के कामकाज पर बात हो रही थी। या आप महसूस कर रहे हैं कि कामकाज कोई मुद्दा नहीं है। मुद्दे कुछ और ही हो गए हैं। तो क्यों हो गए हैं।
■ कामकाज की कोई बात कोई भी नेता चाहे वो पक्ष के हों या विपक्ष के, बीजेपी की बात कर ले। आज 40 से 45 डिग्री की गर्मी में भाषण होता है स्पीच होता है रैली होती। नेताओं को एक्रास द सेक्शन यानी हर जाति वर्ग समुदाय उम्र जेंडर, सब को उनको टच करना है। इतने सारे कम्युनिटी, इतने सारे विषय है डेमोग्राफी और ज्योग्राफी कहते हैं, उन सब के महत्व की बात करनी है, ये क्लीयर है। सबका वोट चाहिए। टीवी का ऐसा है जब तक कोई सनसनी न हो, ऐसा विषय न हो जिसे सब देखना और सुनना न चाहें, तब तक टीवी पर उसे बखान नहीं किया जाता तो, मेरा बोलने का मतलब ये है कि उन 40 मिनट की स्पीच में 35 मिनट तक केवल डिलेवरी की बात हो रही है। वो तमाम तरह की योजनाए गिना रहे हैं। बीजेपी वालों की अगर बात करूं तो पांच मिनट में ऐसा भी होता है कि डिलेवरी के अलाव जो इमोशनल मुद्दे हैं, राष्ट्रीय मुद्दे हैं उनकी भी चर्चा करते हैं।
■ आपने 2014 और 2019 का भाषण भी देखा है मोदी जी का। अभी 2024 का भी देख रहे हैं। कुछ बदलाव है, कमिटमेंट के संर्दभ में एचिवमेंट के संर्दभ में, अगर बदलाव है तो आप क्या बदलाव देख पा रहे हैं।
■ पहले बदलाव था कि आपने 60 साल कांग्रेस को दिए 60 महीने मुझे दे दीजिए और देखिए मैंने गुजरात में जो परिवर्तन किया है सकारात्मक, वो मैं आपके, देश के संदर्भ में करना चाहता हूं। ये एक बेसिक थीम थी इसके ईद-गिर्द सारा हुआ। और उस समय इनकंबेंट गवर्नमेंट मनमोहन सिंह जी की थी। ये तो प्रॉमिस वाली बात थी उन्होंने प्रॉमिस किया कि आप मुझे 60 महीने दीजिए, आपने कांग्रेस को 60 साल दिए। ये प्लॉट के उपर वो गए। सौ वोट जो मशीन में पड़ते हैं वो सौ वोट में से 80 परसेंट का जीवन गर्वमेंट ऑफ द डे पर निर्भर करते है। डायरेक्ट या इन डायरेक्ट। उसका सिंपल सा कारण है कि 70 परसेंट रुरल है और 30 परसेंट अर्बन है। अर्बन का मतलब आठ मेट्रो या अरबन सिटी या 100 मेजर सिटी नहीं है। 6 हजार 500 जहां अर्बन नगर पालिकाएं हैं और नगर निगम हैं, वो क्लासीफाय होते हैं। अर्बन के शहरी क्षेत्र में। वो कांट्रिब्यूट करते हैं 30 परसेंट जनता को। 80 परसेंट लोगों का जीवन उस सरकार पर निर्भर करता है। 50 करोड़ के नए बैंक अकांउट खुले। 2014 से 2019 के दौरान। इंदिरा आवास योजना पहले से थी इंदिरा गांधी के जमाने से। उसमें जो स्पीड और स्केल आई है उसका कोई मुकाबला नहीं है।
■ बेरोजगारी और महंगाई हमेशा रहेंगी
■ वो ठीक है कि आप लोग कहते हैं कि बालाकोट हो गया। मैं बिल्कुल मानने को तैयार नहीं हूं। बालाकोट न भी होता तो परिणाम 325 सीटों के आसपास सीटें आती। 10-15 सीटें आप कम कर सकते हैं। बालाकोट का कोई लेना देना नहीं है। वोट शेयर और जीत के नंबर में अंतर हो सकता है। 2024 के चुनाव में भी वो बोल रहे हैं कि विकसित भारत की बात करी है। वहीं से शुरुआत करी है कि मेरे पास 2047 तक का प्लान है। अभी तक मैंने आपको बेसिक सुख सुविधा देने की कोशिश की है। आपके जीवन में हमेश दो बातें रहेंगी, एक बेरोजगारी, दूसरी महंगाई। ये जो दो मुद्दे हैं जो 50 साल पहले भी थे और 50 साल बाद भी रहेंगे। हां इसमें अंतर कम ज्यादा हो सकता है। ये तो गई मुद्दों की बातें। विकसित भारत का मतलब क्या है, इसे वे अलग अलग रैली में समझा रहे हैं कि सब लोगों के जीवन में संपन्नता आ जाए। उसी को तो डेवलप कंट्री कहते हैं।
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