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संरक्षण का अनूठा उपाय : इंद्रावती टाइगर रिजर्व के सटे गांव में तीन विलुप्त प्रजाति के 140 गिद्ध

संरक्षण का अनूठा उपाय : इंद्रावती टाइगर रिजर्व के सटे गांव में तीन विलुप्त प्रजाति के 140 गिद्ध


गिद्धों के संरक्षण पर गांव मेनूर, बामनपुर, मददेड़ क्षेत्र में 10 युवक बनाए गए गिद्ध मित्र।



जगदलपुर। छत्तीसगढ़ राज्य में मुख्य रूप से 5 प्रजाति के गिद्ध पाए जाते हैं। इसमें से 3 प्रजाति के गिद्ध विलुप्त हो गए हैं। इंद्रावती टाइगर रिजर्व बीजापुर में 3 विलुप्त प्रजाति इंडियन वॉल्चर, व्हाइट रम्पेड वॉल्चर एवं ग्रीफॉन वॉल्चर के गिद्धों की पुष्टि भोपालपटनम के बामनपुर ग्राम के सकलनारायण पहाड़ के पिछले हिस्से के गद्दलसरी गुट्टा इलाके में की गईं थी, इनकी अनुमानित संख्या 140 गिद्धों की थी। इस गिद्धों के संरक्षण के लिए रिजर्व से सटे गांव मेनूर, बामनपुर, मददेड़ क्षेत्र में 10 गिद्ध मित्र बनाए, जो गिद्ध का सर्वेक्षण, रहवास के स्थान, इनके आबादी का अवलोकन, इनके वंशनाश के कारण स्थानीय ग्रामीणों में जागरूकता का प्रचार- प्रसार किया जा रहा है। कैम्पा मद के अंतर्गत गिद्ध संरक्षण परियोजना इन्द्रावती टाइगर रिजर्व बीजापुर अनुमोदित किया गया। गिद्धों के सर्वेक्षण में इन्द्रावती टाइगर रिजर्व में 3 विलुप्त प्रजाति इंडियन वॉल्चर, व्हाइट रम्पेड वॉल्चर के गिद्धों की पुष्टि भोपालपटनम के बामनपुर ग्राम के सकलनारायण पहाड़ के पिछले हिस्से के गद्दलसरी गुट्टा इलाके में की गई थी, इनका अनुमानित संख्या 60 गिद्धों की थी।

ग्रामीणों को गिद्धों का संरक्षण हेतु ग्रामीणों के मुख्य पहलु इनके आस्था से जोड़ने का प्रयास किया। इनके रहवास, सहवास एवं प्रजनन काल की अवलोकन, भी किया गया। जिसमें इनके तीसरे प्रजाति ग्रीफॉन वॉल्चर की पुष्टि लगाया गया। ग्रीष्मकालीन, वर्षाकालीन एवं शीतकालीन सर्वेक्षण से इनके गर्भावधि काल का भी पता लगा। गिद्ध संरक्षण परियोजना के अंतर्गत क्षेत्र के 50 से अधिक ग्राम पंचायत एवं शालाओं में इनके प्रजाति का क्षय के कारणों एवं इन्हे बचने के बारे में जागृति कार्यक्रम भी कराया। गिद्ध साल में औसतन 2-3 घोंसले बनाते हैं, जिनमें से किसी एक में ही अपने अंडे देते हैं। साथ ही वे साल में सिर्फ एक ही अंडे देते हैं। गिद्धों की तीनों प्रजातियों के अवलोकन एवं निरीक्षण के पश्चात उनकी अनुमानित संख्या 140 दर्ज की गई है। इनमें से व्हाइट रम्पेड वॉल्वर एक मात्र प्रजाति है, जो पेड़ों पर घोंसले बनाते हैं।

पांच सवालों पर हो रहा अध्ययन

बताया जा रहा है कि गिद्धों का रहवास केवल भोपालपटनम, जिला बीजापुर में ही क्यों, इनकी प्रजनन काल में नर और मादा का पहचान। क्या गिद्ध प्रजनन के लिए यहां आते हैं, क्या गिद्धों की तीनों प्रजातियों की यहां प्रजनन होता है, गर्भावधि में नर एवं मादा की प्रक्रिया, गिद्धों का संरक्षण ग्रामीणों के साथ मिलकर स्वयंसंचलित कैसे किया जाए।

रहवास स्थल की हुई ट्रैकिंग

रिजर्व के अनुसार गिद्ध संरक्षण जागृति कार्यक्रम के दौरान 50 शालाओं के बच्चों को इनके रहवास स्थल के इलाके में ट्रैकिंग कराई गई। साथ ही इनके रहवास स्थल के आसपास के ग्रामीणों से गिद्ध से जुड़ी सारी पारंपरिक जानकारी भी हासिल की। गिद्ध संरक्षण परियोजना के अंतर्गत हमने ग्रामीणों के साथ जुड़ कर मवेशियों के शव अपशिष्ट करने हेतु ग्राम में उपयुक्त स्थान निर्धारित कर गिद्धों का निरीक्षण करने हेतु कार्य प्रगति पर है। ग्राम में रोजाना भ्रमण, सूत्र ज्ञानधारकों के मिलकर जागरुकता का कार्य एवं प्रत्येक पंचायत से एक युवा को गिद्ध मित्र के पद पर रोजगार भी दिया गया है।

डिक्लोफेनाक से गिद्धों का होता है वंशनाश

इंद्रावती टायगर रिजर्व जगदलपुर के मुख्य वन संरक्षक वन्य जीवन एवं क्षेत्रीय निदेशक राजेश कुमार पांडेय ने बताया कि गिद्धों के वंशनाश में मुख्य भूमिया मवेशियों को दिए जाने वाले दर्द की दवा डिक्लोफेनाक एवं अन्य 9 अलग- अलग दवा की जानकारी ली जा रही है। डिक्लोफेनाक एक नॉनस्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेटरी दवा एनएसए आईडी है, जिसका उपयोग मवेशियों को हल्के से मध्यम दर्द के इलाज के लिए किया जाता है। इसका भी निरीक्षण किया जा रहा है और स्थानीय मवेशियों के रक्त से की, स्थानीय पशु चिकित्सक से इनके इस्तेमाल से जुड़ी सारे मुद्दों पर चर्चा भी की।
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