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अगले कुछ महीनों में घट सकती है महंगाई, मानसून पर नहीं दिखेगा अल नीनो का असर

अगले कुछ महीनों में घट सकती है महंगाई, मानसून पर नहीं दिखेगा अल नीनो का असर

आरबीआइ ने भी चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में खुदरा महंगाई दर पांच प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। वित्त मंत्रालय का मानना है कि आर्थिक सूचकांक में मजबूती को देखते हुए ग्रामीण व शहरी दोनों ही स्तर पर घरेलू खपत में बढ़ोतरी होगी। निजी पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी के साथ कारोबार को लेकर लोगों में उत्साह बढ़ा ह


मासिक आधार पर जनवरी में दाल व सब्जी के दाम में कमी आई है।

 वित्त मंत्रालय का मानना है कि आगामी महीनों में खुदरा महंगाई में कमी आएगी। वहीं, रबी की अधिक बुवाई, मैन्यूफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में तेजी से आगामी वित्त वर्ष 2024-25 में आर्थिक गतिविधियों में मजबूती रहेगी। इस बार अल नीनो के कमजोर पड़ने से अच्छे मानसून की उम्मीद की जा रही है। खरीफ की फसल भी अच्छी होने से ग्रामीण भारत की मांग में तेजी बनी रहेगी जो आगामी वित्त वर्ष में आर्थिक मजबूती को कायम रखेगा।

आरबीआइ ने आगामी वित्त वर्ष 2024-25 में विकास दर सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। मंगलवार को वित्त मंत्रालय की तरफ से जारी जनवरी माह की रिपोर्ट में कहा गया है कि कोर महंगाई में गिरावट के रुख और खाद्य वस्तुओं की कीमतों में नरमी से आने वाले समय में महंगाई दर नीचे रहने की उम्मीद की जा रही है। मासिक आधार पर जनवरी में दाल व सब्जी के दाम में कमी आई है।

आरबीआइ ने भी चालू वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में खुदरा महंगाई दर पांच प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है।वित्त मंत्रालय का मानना है कि आर्थिक सूचकांक में मजबूती को देखते हुए ग्रामीण व शहरी दोनों ही स्तर पर घरेलू खपत में बढ़ोतरी होगी। निजी पूंजीगत खर्च में बढ़ोतरी के साथ कारोबार को लेकर लोगों में उत्साह बढ़ा है और बैंक व कारपोरेट का लेखा-जोखा भी मजबूत दिख रहा है।

दूसरी तरफ सरकारी पूंजीगत खर्च में लगातार बढ़ोतरी जारी है और आगामी वित्त वर्ष में भी यह सिलसिला जारी रहेगा। लेकिन भू-राजनीतिक उथल-पुथल से सप्लाई चेन के प्रभावित होने और लाजिस्टिक लागत में बढ़ोतरी की आशंका है। वहीं, लाल सागर में व्यवधान भी वैश्विक मांग को प्रभावित कर सकता है। इससे हमारा निर्यात प्रभावित हो सकता है।

वैश्विक मांग में कमी से चालू वित्त वर्ष में कच्चे तेल की औसत कीमत 82.2 डालर प्रति बैरल रहने की उम्मीद है जबकि गत वित्त वर्ष में कच्चे तेल की औसत कीमत 93.2 डालर प्रति बैरल थी। इससे वस्तुओं की लागत में कमी आएगी और यह हमारी निर्यात क्षमता में बढ़ोतरी करेगी।
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