Israel 1967 War: तीन देशों के साथ इजरायल के छह दिन के युद्ध ने हमेशा के लिए बदल दिया मिडिल ईस्ट का नक्शा
Israel 1967 War: तीन देशों के साथ इजरायल के छह दिन के युद्ध ने हमेशा के लिए बदल दिया मिडिल ईस्ट का नक्शा
Israel 1967 War आतंकवादी संगठन हमास ने एक बार फिर इजरायल पर हमला कर दिया है जिसमें अब तक कई लोगों की जान चली गई है। हालांकि इजरायल ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है। गौरतलब है कि इससे पहले भी इजरायल पर एक साथ तीन अरब देशों ने हमला किया था जिससे अकेले इजरायल ने लगातार छह दिन तक लड़ाई लड़ी थी और जीत अपने नाम किया था।
मिस्र, सीरिया और जॉर्डन के खिलाफ अकेले लड़ा था इजरायल
HIGHLIGHTSमिस्र, सीरिया और जॉर्डन के खिलाफ अकेले लड़ा था इजरायल
तीनों अरब देशों ने खो दिए थे प्रमुख क्षेत्र
132 घंटे की इस जंग में हजारों लोगों ने गंवाई थी जिंदगी
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। Arab Israeli War 1967: यहूदी देश इजरायल और फलस्तीन के बीच एक बार फिर जंग छिड़ गई है। दरअसल, फलस्तीन के कथित समर्थक आतंकवादी संगठन हमास ने 7 अक्टूबर को स्थानीय समयानुसार लगभग 6:30 बजे गाजा से इजरायल पर हवाई हमले शुरू कर दिए हैं। लगातार आधे घंटे तक गाजा से इजरायल के शहरों पर रॉकेट से हमले किए गए। इस हमले से लगभग 250 इजरायलियों की मौत हो गई है और 1500 से अधिक इजरायली घायल हो गए हैं।
इतनी ही नहीं, हमास आतंकवादियों ने कई इजरायली निवासियों और सैनिकों को बंधक भी बना लिया है। इसके बाद हमास के कई आतंकवादी गाजा पट्टी से इजरायल में प्रवेश कर गए और इजरायली शहरों पर कब्जा कर लिया है। इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए हमास के सैन्य कमांडर मुहम्मद अल-दीफ ने ऑपरेशन को 'अल-अक्सा स्टॉर्म' कहा और कहा कि इजरायल पर हमला महिलाओं पर हमलों, यरूशलम में अल-अक्सा मस्जिद के अपमान और गाजा की चल रही घेराबंदी का जवाब था।
ऐसे में सवाल आता है कि आखिर फलस्तीन समर्थक आतंकवादी संगठन हमास ने यह जंग क्यों छेड़ी और आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? इस खबर में हम आपको इन सभी सवालों का जवाब देंगे और साथ ही बताएंगे कि आखिर एक यहूदी देश ने अकेले कैसे अपने आप को अरब देशों के बीच पूरी ताकत के साथ स्थापित किया है।
फलस्तीन और इजरायल के बीच की यह जंग दशकों पहले से चली आ रही है। दरअसल, साल 1967 में इजरायल ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए छह दिन तक अकेले ही तीन अरब देशों का मुकाबला किया था। इस दौरान उसने तीनों देशों के प्रमुख क्षेत्रों पर अपना कब्जा भी कर लिया, जिसके कारण उन कब्जे वाले क्षेत्रों से फलस्तीनियों को भागना पड़ा था। इस बात से फलस्तीनी आज तक इजरायल के खिलाफ हैं और मौका मिलने पर अपने क्षेत्र को वापस पाने की कोशिश करते हैं।
हालांकि, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या फलस्तीन अपने इरादों में कामयाब हो पाएगा, क्योंकि पहले भी इजरायल ने अकेले ही डटकर तीन ताकतवर देशों का सामना किया था और उन्हें धूल चटा दी थी। एक या दो नहीं, बल्कि इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद अरब देश और इजरायल के बीच चार बड़े युद्ध हुए थे। सभी अरब देशों ने इजरायल को खत्म करना चाहा था, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सके।
अरब देशों और इजरायल के रिश्तों में दरार
1948 में, इजरायल की स्थापना को लेकर विवादों के बाद, अरब देशों के गठबंधन ने यहूदी राज्य पर आक्रमण किया, जो असफल आक्रमण था। संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना के तहत आवंटित क्षेत्र से कहीं अधिक बड़े क्षेत्र पर इजरायल के नियंत्रण के साथ 1948 का युद्ध समाप्त हुआ था।
इसके बाद 'स्वेज संकट' के नाम से जाना जाने वाला दूसरा बड़ा संघर्ष 1956 में शुरू हुआ था। उस दौरान मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर के स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के जवाब में इजरायल, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस पर हमला किया। मिस्र द्वारा नहर पर पुनः नियंत्रण हासिल करने के साथ युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन इससे इजरायल और अरब राज्यों के बीच संबंधों में काफी खटास आ गई थी।
छह दिनों तक चलने वाला यह युद्ध तीन अरब देशों और इजरायल के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में इजरायल के खिलाफ मिस्र, सीरिया और जॉर्डन खड़ा था। इस खूनी संघर्ष ने कई लोगों की जिंदगियां छीन ली। इस युद्ध में इजरायल ने जीत हासिल कर के मध्य पूर्व के नक्शे को कई हद तक बदल दिया था।
दरअसल, सीमा विवाद ही इस छह दिवसीय युद्ध का प्रमुख कारक बनकर उभरा था। 1960 में सीरियाई समर्थक फलस्तीनियों ने इजरायली सीमा के पार हमले करने शुरू कर दिए थे। हालांकि, अब तक सब काबू में रहा था, लेकिन अप्रैल 1967 में सीरिया और इजरायल के बीच काफी हिंसक हवाई युद्ध शुरू हो गया, जिसमें सीरिया के सात लड़ाकू जेट नष्ट हो गए थे।
इसको लेकर सोवियत संघ ने सीरिया के समर्थक देश मिस्र को खुफिया जानकारी दी कि इजरायल ने सीरिया पर आक्रमण शुरू कर दिया है और अपनी उत्तरी सीमा पर अपने सैनिकों को भेज दिया है। हालांकि, यह जानकारी गलत थी, लेकिन मिस्र के राष्ट्रपति ने अपना समर्थन दिखाते हुए अपने सैनिकों को सीरिया की मदद के लिए आगे भेज दिया।
छह दिवसीय युद्ध की शुरुआत (Six Day War)
मई 1967, में मिस्र ने सिनाई प्रायद्वीप में अपनी सेनाएं जुटाईं और 'संयुक्त राष्ट्र शांति सेना' को निष्कासित कर दिया, 1956 के जो स्वेज संकट के बाद से ही वहां तैनात थी। साथ ही, उस दौरान मिस्र ने इजराइल के लिए एक महत्वपूर्ण शिपिंग लेन, तिरान जलडमरूमध्य को भी बंद कर दिया।
5 जून, 1967 को इजरायल ने मिस्र के खिलाफ 'ऑपरेशन फोकस' शुरू किया और उस सुबह लगभग 200 विमानों ने इजरायल से उड़ान भरी। इस दौरान उन्होंने 18 अलग-अलग हवाई क्षेत्रों पर हमला किया और मिस्र की वायु सेना को लगभग 90 प्रतिशत को खत्म कर दिया।
इसके बाद इजरायल ने तब अपने हमले की सीमा का विस्तार किया और जॉर्डन, सीरिया और इराक की वायु सेनाओं को भी नष्ट कर दिया। इस तरह 5 जून के अंत तक इजरायली पायलटों ने मध्य पूर्व पर आसमान का अपना पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया था। इजरायल ने हवाई क्षेत्र में तो अपना पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया था, लेकिन इसके बाद भी लंबे समय तक भयंकर लड़ाई जारी रही थी।
दरअसल, 5 जून को इजरायल ने हवाई क्षेत्र के साथ ही जमीनी हमले भी शुरू कर दिए थे। मिस्र में जमीनी युद्ध 5 जून को शुरू हुआ था। इजरायली टैंक और पैदल सेना ने सीमा पार और सिनाई प्रायद्वीप और गाजा पट्टी में धावा बोल दिया। इस दौरान मिस्र के फील्ड मार्शल अब्देल हकीम आमेर द्वारा सामान्य रूप से पीछे हटने का आदेश दिया। जिसके बाद अगले कई दिनों तक, इजरायली सैनिकों ने सिनाई के पार मिस्र के लोगों का पीछा किया, जिस दौरान काफी हताहत हुए। इस तरह 5 जून का दिन समाप्त हुआ था।
छह-दिवसीय युद्ध में एक दूसरा मोर्चा 6 जून को खोला गया। इस दिन जॉर्डन को झूठी रिपोर्ट मिली थी कि मिस्र ने इजरायल के खिलाफ जीत हासिल कर ली है। इसपर प्रतिक्रिया देते हुए जॉर्डन ने यरूशलेम में इजरायल के ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी। इसका जवाब देते हुए इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर विनाशकारी जवाबी हमले शुरू कर दिए। इस तरह 6 जून को इजरायल का जॉर्डन से सामना हुआ, जिसमें इजरायल को काफी फायदा हुआ था।
इसके बाद 7 जून को, इजरायली सैनिकों ने यरूशलेम के पुराने शहर पर कब्जा कर लिया और पश्चिमी दीवार (Western Wall) पर प्रार्थना करके जश्न मनाया।
9 जून, 1967 को इजरायल ने सीरिया के खिलाफ एक बार फिर मोर्चा खोला। दो दिनों की लड़ाई में इजरायली सेना ने गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 10 जून, 1967 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में संघर्ष विराम प्रभावी हुआ। लड़ाई का अंतिम चरण सीरिया के साथ इजरायल की पूर्वोत्तर सीमा पर हुआ।
बाद में अनुमान लगाया गया कि केवल 132 घंटों की लड़ाई में लगभग 20 हजार अरब और 800 इजरायली मारे गए थे। हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं हुई है। मरने वालों की संख्या कम ज्यादा भी हो सकती है। इस युद्ध में हजारों लोग घायल भी हुए थे।
और यूं बदल गया मध्य पूर्वी देशों का नक्शा
छह दिवसीय युद्ध (Six Day War) इजरायल के लिए एक बड़ी जीत थी। इसने इजरायली क्षेत्र के आकार को तीन गुना बढ़ा दिया और मिडल ईस्ट का नक्शा बदल दिया। दरअसल, इस युद्ध के दौरान इजरायल को सिनाई प्रायद्वीप, गोलान हाइट्स और पूर्वी यरुशलम जैसे रणनीतिक क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया था।
छह दिवसीय युद्ध का मध्य पूर्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। इससे अरब-इजरायल संघर्ष की आग भड़क गई और एक नए फलस्तीनी शरणार्थी संकट भी पैदा कर दिया। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि हजारों फलस्तीनियों को इजरायल के कब्जे वाले क्षेत्र से भागना पड़ा था। छह दिवसीय युद्ध मध्य पूर्व में एक ऐतिहासिक पल था। हालांकि, इस युद्ध ने अरब-इजरायल संघर्ष को हल करने के प्रयासों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए नई चुनौतियां भी पैदा कर दी थी।
Israel 1967 War आतंकवादी संगठन हमास ने एक बार फिर इजरायल पर हमला कर दिया है जिसमें अब तक कई लोगों की जान चली गई है। हालांकि इजरायल ने भी जवाबी कार्रवाई शुरू कर दी है। गौरतलब है कि इससे पहले भी इजरायल पर एक साथ तीन अरब देशों ने हमला किया था जिससे अकेले इजरायल ने लगातार छह दिन तक लड़ाई लड़ी थी और जीत अपने नाम किया था।
मिस्र, सीरिया और जॉर्डन के खिलाफ अकेले लड़ा था इजरायल
HIGHLIGHTSमिस्र, सीरिया और जॉर्डन के खिलाफ अकेले लड़ा था इजरायल
तीनों अरब देशों ने खो दिए थे प्रमुख क्षेत्र
132 घंटे की इस जंग में हजारों लोगों ने गंवाई थी जिंदगी
ऑनलाइन डेस्क, नई दिल्ली। Arab Israeli War 1967: यहूदी देश इजरायल और फलस्तीन के बीच एक बार फिर जंग छिड़ गई है। दरअसल, फलस्तीन के कथित समर्थक आतंकवादी संगठन हमास ने 7 अक्टूबर को स्थानीय समयानुसार लगभग 6:30 बजे गाजा से इजरायल पर हवाई हमले शुरू कर दिए हैं। लगातार आधे घंटे तक गाजा से इजरायल के शहरों पर रॉकेट से हमले किए गए। इस हमले से लगभग 250 इजरायलियों की मौत हो गई है और 1500 से अधिक इजरायली घायल हो गए हैं।
इतनी ही नहीं, हमास आतंकवादियों ने कई इजरायली निवासियों और सैनिकों को बंधक भी बना लिया है। इसके बाद हमास के कई आतंकवादी गाजा पट्टी से इजरायल में प्रवेश कर गए और इजरायली शहरों पर कब्जा कर लिया है। इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए हमास के सैन्य कमांडर मुहम्मद अल-दीफ ने ऑपरेशन को 'अल-अक्सा स्टॉर्म' कहा और कहा कि इजरायल पर हमला महिलाओं पर हमलों, यरूशलम में अल-अक्सा मस्जिद के अपमान और गाजा की चल रही घेराबंदी का जवाब था।
ऐसे में सवाल आता है कि आखिर फलस्तीन समर्थक आतंकवादी संगठन हमास ने यह जंग क्यों छेड़ी और आखिर इसके पीछे की वजह क्या है? इस खबर में हम आपको इन सभी सवालों का जवाब देंगे और साथ ही बताएंगे कि आखिर एक यहूदी देश ने अकेले कैसे अपने आप को अरब देशों के बीच पूरी ताकत के साथ स्थापित किया है।
फलस्तीन और इजरायल के बीच की यह जंग दशकों पहले से चली आ रही है। दरअसल, साल 1967 में इजरायल ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए छह दिन तक अकेले ही तीन अरब देशों का मुकाबला किया था। इस दौरान उसने तीनों देशों के प्रमुख क्षेत्रों पर अपना कब्जा भी कर लिया, जिसके कारण उन कब्जे वाले क्षेत्रों से फलस्तीनियों को भागना पड़ा था। इस बात से फलस्तीनी आज तक इजरायल के खिलाफ हैं और मौका मिलने पर अपने क्षेत्र को वापस पाने की कोशिश करते हैं।
हालांकि, ऐसे में सवाल उठता है कि क्या फलस्तीन अपने इरादों में कामयाब हो पाएगा, क्योंकि पहले भी इजरायल ने अकेले ही डटकर तीन ताकतवर देशों का सामना किया था और उन्हें धूल चटा दी थी। एक या दो नहीं, बल्कि इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद अरब देश और इजरायल के बीच चार बड़े युद्ध हुए थे। सभी अरब देशों ने इजरायल को खत्म करना चाहा था, लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सके।
अरब देशों और इजरायल के रिश्तों में दरार
1948 में, इजरायल की स्थापना को लेकर विवादों के बाद, अरब देशों के गठबंधन ने यहूदी राज्य पर आक्रमण किया, जो असफल आक्रमण था। संयुक्त राष्ट्र विभाजन योजना के तहत आवंटित क्षेत्र से कहीं अधिक बड़े क्षेत्र पर इजरायल के नियंत्रण के साथ 1948 का युद्ध समाप्त हुआ था।
इसके बाद 'स्वेज संकट' के नाम से जाना जाने वाला दूसरा बड़ा संघर्ष 1956 में शुरू हुआ था। उस दौरान मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्देल नासर के स्वेज नहर के राष्ट्रीयकरण के जवाब में इजरायल, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस पर हमला किया। मिस्र द्वारा नहर पर पुनः नियंत्रण हासिल करने के साथ युद्ध समाप्त हो गया, लेकिन इससे इजरायल और अरब राज्यों के बीच संबंधों में काफी खटास आ गई थी।
छह दिनों तक चलने वाला यह युद्ध तीन अरब देशों और इजरायल के बीच लड़ा गया था। इस युद्ध में इजरायल के खिलाफ मिस्र, सीरिया और जॉर्डन खड़ा था। इस खूनी संघर्ष ने कई लोगों की जिंदगियां छीन ली। इस युद्ध में इजरायल ने जीत हासिल कर के मध्य पूर्व के नक्शे को कई हद तक बदल दिया था।
दरअसल, सीमा विवाद ही इस छह दिवसीय युद्ध का प्रमुख कारक बनकर उभरा था। 1960 में सीरियाई समर्थक फलस्तीनियों ने इजरायली सीमा के पार हमले करने शुरू कर दिए थे। हालांकि, अब तक सब काबू में रहा था, लेकिन अप्रैल 1967 में सीरिया और इजरायल के बीच काफी हिंसक हवाई युद्ध शुरू हो गया, जिसमें सीरिया के सात लड़ाकू जेट नष्ट हो गए थे।
इसको लेकर सोवियत संघ ने सीरिया के समर्थक देश मिस्र को खुफिया जानकारी दी कि इजरायल ने सीरिया पर आक्रमण शुरू कर दिया है और अपनी उत्तरी सीमा पर अपने सैनिकों को भेज दिया है। हालांकि, यह जानकारी गलत थी, लेकिन मिस्र के राष्ट्रपति ने अपना समर्थन दिखाते हुए अपने सैनिकों को सीरिया की मदद के लिए आगे भेज दिया।
छह दिवसीय युद्ध की शुरुआत (Six Day War)
मई 1967, में मिस्र ने सिनाई प्रायद्वीप में अपनी सेनाएं जुटाईं और 'संयुक्त राष्ट्र शांति सेना' को निष्कासित कर दिया, 1956 के जो स्वेज संकट के बाद से ही वहां तैनात थी। साथ ही, उस दौरान मिस्र ने इजराइल के लिए एक महत्वपूर्ण शिपिंग लेन, तिरान जलडमरूमध्य को भी बंद कर दिया।
5 जून, 1967 को इजरायल ने मिस्र के खिलाफ 'ऑपरेशन फोकस' शुरू किया और उस सुबह लगभग 200 विमानों ने इजरायल से उड़ान भरी। इस दौरान उन्होंने 18 अलग-अलग हवाई क्षेत्रों पर हमला किया और मिस्र की वायु सेना को लगभग 90 प्रतिशत को खत्म कर दिया।
इसके बाद इजरायल ने तब अपने हमले की सीमा का विस्तार किया और जॉर्डन, सीरिया और इराक की वायु सेनाओं को भी नष्ट कर दिया। इस तरह 5 जून के अंत तक इजरायली पायलटों ने मध्य पूर्व पर आसमान का अपना पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया था। इजरायल ने हवाई क्षेत्र में तो अपना पूर्ण नियंत्रण हासिल कर लिया था, लेकिन इसके बाद भी लंबे समय तक भयंकर लड़ाई जारी रही थी।
दरअसल, 5 जून को इजरायल ने हवाई क्षेत्र के साथ ही जमीनी हमले भी शुरू कर दिए थे। मिस्र में जमीनी युद्ध 5 जून को शुरू हुआ था। इजरायली टैंक और पैदल सेना ने सीमा पार और सिनाई प्रायद्वीप और गाजा पट्टी में धावा बोल दिया। इस दौरान मिस्र के फील्ड मार्शल अब्देल हकीम आमेर द्वारा सामान्य रूप से पीछे हटने का आदेश दिया। जिसके बाद अगले कई दिनों तक, इजरायली सैनिकों ने सिनाई के पार मिस्र के लोगों का पीछा किया, जिस दौरान काफी हताहत हुए। इस तरह 5 जून का दिन समाप्त हुआ था।
छह-दिवसीय युद्ध में एक दूसरा मोर्चा 6 जून को खोला गया। इस दिन जॉर्डन को झूठी रिपोर्ट मिली थी कि मिस्र ने इजरायल के खिलाफ जीत हासिल कर ली है। इसपर प्रतिक्रिया देते हुए जॉर्डन ने यरूशलेम में इजरायल के ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी। इसका जवाब देते हुए इजरायल ने पूर्वी यरुशलम और वेस्ट बैंक पर विनाशकारी जवाबी हमले शुरू कर दिए। इस तरह 6 जून को इजरायल का जॉर्डन से सामना हुआ, जिसमें इजरायल को काफी फायदा हुआ था।
इसके बाद 7 जून को, इजरायली सैनिकों ने यरूशलेम के पुराने शहर पर कब्जा कर लिया और पश्चिमी दीवार (Western Wall) पर प्रार्थना करके जश्न मनाया।
9 जून, 1967 को इजरायल ने सीरिया के खिलाफ एक बार फिर मोर्चा खोला। दो दिनों की लड़ाई में इजरायली सेना ने गोलान हाइट्स पर कब्जा कर लिया। इसके बाद 10 जून, 1967 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता में संघर्ष विराम प्रभावी हुआ। लड़ाई का अंतिम चरण सीरिया के साथ इजरायल की पूर्वोत्तर सीमा पर हुआ।
बाद में अनुमान लगाया गया कि केवल 132 घंटों की लड़ाई में लगभग 20 हजार अरब और 800 इजरायली मारे गए थे। हालांकि, इस बात की पुष्टि नहीं हुई है। मरने वालों की संख्या कम ज्यादा भी हो सकती है। इस युद्ध में हजारों लोग घायल भी हुए थे।
और यूं बदल गया मध्य पूर्वी देशों का नक्शा
छह दिवसीय युद्ध (Six Day War) इजरायल के लिए एक बड़ी जीत थी। इसने इजरायली क्षेत्र के आकार को तीन गुना बढ़ा दिया और मिडल ईस्ट का नक्शा बदल दिया। दरअसल, इस युद्ध के दौरान इजरायल को सिनाई प्रायद्वीप, गोलान हाइट्स और पूर्वी यरुशलम जैसे रणनीतिक क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया था।
छह दिवसीय युद्ध का मध्य पूर्व पर गहरा प्रभाव पड़ा। इससे अरब-इजरायल संघर्ष की आग भड़क गई और एक नए फलस्तीनी शरणार्थी संकट भी पैदा कर दिया। ऐसा इसलिए हुआ था, क्योंकि हजारों फलस्तीनियों को इजरायल के कब्जे वाले क्षेत्र से भागना पड़ा था। छह दिवसीय युद्ध मध्य पूर्व में एक ऐतिहासिक पल था। हालांकि, इस युद्ध ने अरब-इजरायल संघर्ष को हल करने के प्रयासों में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए नई चुनौतियां भी पैदा कर दी थी।
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