CG Elections 2023: छत्तीसगढ़ में नाकाम रहीं जातिगत ध्रुवीकरण की कोशिशें, अब भूपेश सरकार ने खेला है आरक्षण का दांव
CG Elections 2023: छत्तीसगढ़ में नाकाम रहीं जातिगत ध्रुवीकरण की कोशिशें, अब भूपेश सरकार ने खेला है आरक्षण का दांव
सत्ता वापसी के लिए भूपेश सरकार ने आरक्षण का दांव खेला है। विधानसभा में कांग्रेस ने जो आरक्षण संशोधन विधेयक पास कराया है उसमें एससी वर्ग के लिए 12 की जगह 13 प्रतिशत एसटी 32 प्रतिशत ओबीसी 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रविधान किया है। हालांकि यह विधेयक राजभवन में अभी लंबित है।
संदीप तिवारी, रायपुर। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में जातिगत ध्रुवीकरण की कोशिशें अब तक कारगर साबित नहीं हुई हैं। पिछले चार चुनावों में कोई भी राजनीतिक दल यह दावा करने की स्थिति में नहीं रहा कि जाति के आधार पर मतदान में उसे फायदा हुआ है। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम कहते हैं कि आरक्षण के साथ-साथ जनजाति समाज की विभिन्न समस्याएं, संवैधानिक अधिकार और क्षेत्र के विकास के मुद्दे चुनाव को प्रभावित करते हैं।
वहीं आदिवासी नेता व कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह का भी कहना है कि राजनीतिक दल आरक्षण का दांव खेलते जरूर हैं, मगर आदिवासी अपने अधिकारों समझते हैं। उनके अपने मुद्दे हैं। जो उन्हें उठाता है, उसे ही फायदा होता है। जाति के ध्रुवीकरण की रणनीति उन्हें स्वीकार नहीं।
रमन सिंह सरकार भी खेल चुकी है दांव
बता दें कि वर्ष 2012 में पूर्ववर्ती भाजपा की डा. रमन सिंह सरकार ने आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ाकर 58 प्रतिशत करके बड़ा दांव खेला था। इसके अनुसार अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण को 20 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के आरक्षण को 16 से घटाकर 12 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को 14 प्रतिशत यथावत रखा था। इसके बाद भी वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को एसटी की 29 सीट में 11 सीटें मिल पाई थीं, जबकि वर्ष 2008 के चुनाव में 19 सीटें मिली थीं। वहीं 2013 के चुनाव से पहले जिस एससी वर्ग का आरक्षण घटाया था, उसके लिए आरक्षित 10 सीटों में नौ सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी।
अब भूपेश सरकार ने खेला है आरक्षण का दांव
विधानसभा में कांग्रेस ने जो आरक्षण संशोधन विधेयक पास कराया है, उसमें एससी वर्ग के लिए 12 की जगह 13 प्रतिशत, एसटी 32 प्रतिशत, ओबीसी 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रविधान किया है। हालांकि यह विधेयक राजभवन में अभी लंबित है। कांग्रेस के पास अभी एसटी वर्ग की 29 में से 27 सीटें हैं, जबकि भाजपा के पास मात्र दो सीटें। इसी तरह एससी की 10 में से सात सीटें पर कांग्रेस, दो पर भाजपा और एक पर बसपा के विधायक हैं।
एससी वर्ग से ये नेता प्रभावशील
भाजपा से रायपुर-बिलासपुर संभाग से पूर्व मंत्री पुन्नूलाल मोहिले, डा. कृष्णमूर्ति बांधी और पूर्व विधायक नवीन मारकंडेय, दयालदास बघेल, कमला पाटले और गुहाराम अजगले शामिल हैं। इसी तरह कांग्रेस से मंत्री गुरु रुद्र कुमार, मंत्री डा. शिवकुमार डहरिया और पूर्व सांसद पीआर खूंटे हैं।
एसटी वर्ग ने कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस का दिया साथ
विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने एसटी के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 26 सीटों पर और भाजपा ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। उपचुनाव के बाद कांग्रेस के पास 27 सीटें हो गई हैं और भाजपा के पास दो सीटें ही बची हैं। इसके पहले 2013 के चुनाव में 29 में से 18 सीटों पर जीत के बाद भी कांग्रेस सत्ता से दूर थी जबकि भाजपा ने 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2008 में भाजपा ने 29 सीटों में से 19 पर जीत हासिल कर सरकार बनाई थी। तब कांग्रेस को 10 सीटों पर ही जीत मिली थी।
सत्ता वापसी के लिए भूपेश सरकार ने आरक्षण का दांव खेला है। विधानसभा में कांग्रेस ने जो आरक्षण संशोधन विधेयक पास कराया है उसमें एससी वर्ग के लिए 12 की जगह 13 प्रतिशत एसटी 32 प्रतिशत ओबीसी 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रविधान किया है। हालांकि यह विधेयक राजभवन में अभी लंबित है।
संदीप तिवारी, रायपुर। छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनाव में जातिगत ध्रुवीकरण की कोशिशें अब तक कारगर साबित नहीं हुई हैं। पिछले चार चुनावों में कोई भी राजनीतिक दल यह दावा करने की स्थिति में नहीं रहा कि जाति के आधार पर मतदान में उसे फायदा हुआ है। भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम कहते हैं कि आरक्षण के साथ-साथ जनजाति समाज की विभिन्न समस्याएं, संवैधानिक अधिकार और क्षेत्र के विकास के मुद्दे चुनाव को प्रभावित करते हैं।
वहीं आदिवासी नेता व कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह का भी कहना है कि राजनीतिक दल आरक्षण का दांव खेलते जरूर हैं, मगर आदिवासी अपने अधिकारों समझते हैं। उनके अपने मुद्दे हैं। जो उन्हें उठाता है, उसे ही फायदा होता है। जाति के ध्रुवीकरण की रणनीति उन्हें स्वीकार नहीं।
रमन सिंह सरकार भी खेल चुकी है दांव
बता दें कि वर्ष 2012 में पूर्ववर्ती भाजपा की डा. रमन सिंह सरकार ने आरक्षण की सीमा को 50 से बढ़ाकर 58 प्रतिशत करके बड़ा दांव खेला था। इसके अनुसार अनुसूचित जनजाति (एसटी) के आरक्षण को 20 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत, अनुसूचित जाति (एससी) के आरक्षण को 16 से घटाकर 12 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के आरक्षण को 14 प्रतिशत यथावत रखा था। इसके बाद भी वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को एसटी की 29 सीट में 11 सीटें मिल पाई थीं, जबकि वर्ष 2008 के चुनाव में 19 सीटें मिली थीं। वहीं 2013 के चुनाव से पहले जिस एससी वर्ग का आरक्षण घटाया था, उसके लिए आरक्षित 10 सीटों में नौ सीटों पर भाजपा को जीत मिली थी।
अब भूपेश सरकार ने खेला है आरक्षण का दांव
विधानसभा में कांग्रेस ने जो आरक्षण संशोधन विधेयक पास कराया है, उसमें एससी वर्ग के लिए 12 की जगह 13 प्रतिशत, एसटी 32 प्रतिशत, ओबीसी 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए चार प्रतिशत आरक्षण देने का प्रविधान किया है। हालांकि यह विधेयक राजभवन में अभी लंबित है। कांग्रेस के पास अभी एसटी वर्ग की 29 में से 27 सीटें हैं, जबकि भाजपा के पास मात्र दो सीटें। इसी तरह एससी की 10 में से सात सीटें पर कांग्रेस, दो पर भाजपा और एक पर बसपा के विधायक हैं।
एससी वर्ग से ये नेता प्रभावशील
भाजपा से रायपुर-बिलासपुर संभाग से पूर्व मंत्री पुन्नूलाल मोहिले, डा. कृष्णमूर्ति बांधी और पूर्व विधायक नवीन मारकंडेय, दयालदास बघेल, कमला पाटले और गुहाराम अजगले शामिल हैं। इसी तरह कांग्रेस से मंत्री गुरु रुद्र कुमार, मंत्री डा. शिवकुमार डहरिया और पूर्व सांसद पीआर खूंटे हैं।
एसटी वर्ग ने कभी भाजपा तो कभी कांग्रेस का दिया साथ
विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने एसटी के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 26 सीटों पर और भाजपा ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। उपचुनाव के बाद कांग्रेस के पास 27 सीटें हो गई हैं और भाजपा के पास दो सीटें ही बची हैं। इसके पहले 2013 के चुनाव में 29 में से 18 सीटों पर जीत के बाद भी कांग्रेस सत्ता से दूर थी जबकि भाजपा ने 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। 2008 में भाजपा ने 29 सीटों में से 19 पर जीत हासिल कर सरकार बनाई थी। तब कांग्रेस को 10 सीटों पर ही जीत मिली थी।
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