छत्तीसगढ़ के इन जिलों पर सबकी नजर, नक्सलियों के डर के खिलाफ लोकतंत्र डटकर खड़ा
छत्तीसगढ़ के इन जिलों पर सबकी नजर, नक्सलियों के डर के खिलाफ लोकतंत्र डटकर खड़ा
दुनियाभर में सुर्खियां बटोरने वाले बस्तर में इस चुनाव में भी नक्सलियों के खिलाफ लोकतंत्र डटकर खड़ा है। पिछले वर्षों के चुनावों को देखें तो यहां लगातार लोकतंत्र जीत रहा है और दहशत की हार हो रही है। बस्तर संभाग में मतदान का लगातार बढ़ता आंकड़ा इसकी तस्दीक भी कर रहा है।
राज्य ब्यूरो, रायपुर। दुनियाभर में सुर्खियां बटोरने वाले बस्तर में इस चुनाव में भी नक्सलियों के खिलाफ लोकतंत्र डटकर खड़ा है। पिछले वर्षों के चुनावों को देखें तो यहां लगातार लोकतंत्र जीत रहा है और दहशत की हार हो रही है। बस्तर संभाग में मतदान का लगातार बढ़ता आंकड़ा इसकी तस्दीक भी कर रहा है।
हालांकि अब तक ऐसा कोई चुनाव नहीं रहा है जब यहां विधानसभा चुनाव में नक्सली हिंसा की वारदातें नहीं हुई हो। नक्सली अपनी ओर से चुनाव को प्रभावित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं मगर इन दशहतगर्द से लड़ने के लिए स्थानीय लोगों में भी जागरुकता धीरे-धीरे आ रही है।
दहशत मचाने के लिए जगह-जगह काटी गईं सड़कें
नक्सली हिंसा के अलावा हत्या, लूटपाट, बम विस्फोट, दहशत मचाने के लिए जगह-जगह काटी गईं सड़कें, सड़कों के नीचे गड़े बम और वूबी ट्रेप, पेड़ों पर टंगे पोस्टर जिनमें चुनाव बहिष्कार की धमकियां आम बात हैं। पिछले चुनावों में भी नक्सलगढ़ में जगह-जगह पोस्टर लगे हैं जिनमें वोट डालने पर अंगुली काटने की धमकी दी गई है।
इन धमकियों के बाद प्रशासन ने अंदरूनी इलाकों के मतदाताओं को अमिट स्याही से छूट देने पर विचार भी किया। नक्सली हर बार यह धमकी देते हैं। बाद में गांव में जाकर वोटरों की अंगुली चेक करते हैं और उनकी पिटाई भी करते हैं। इसके बावजूद बस्तर के सुदूर जंगलों में हर बार वोटिंग होती है।
गनतंत्र पर लोकतंत्र की धमक
पिछले चुनावों में जंगल में कतार लगाकर वोट डालने के लिए खड़े आदिवासी लोकतंत्र के विजय की गाथा लिखते देखे जा चुके हैं। यहां गनतंत्र पर हमेशा लोकतंत्र जीतता रहा है। इस बार भी जीतेगा। यही बस्तर के चुनाव की खासियत है। इसीलिए बस्तर पर सबकी नजर है। इस बार यहां डीआरजी, एसटीएफ, बस्तर फाइटर्स, कोबरा जैसे स्पेशल फोर्स की मदद ली जाएगी। सीआरपीएफ और आइटीबीपी के जवान भी बस्तर में मोर्चा संभालेंगे। सीआरपीएफ पहले से मौजूद अपनी इकाइयों के अलावा अतिरिक्त 100 कंपनियों को तैनात करेगा। यहां नक्सल विरोधी अभियानों के लिए लगभग 25-30 बटालियनों को स्थायी रूप से तैनात किया गया है।
बस्तर संभाग में इस तरह बढ़ा आंकड़ा
वर्ष: मतदान प्रतिशत
1998 - 49.50
2003 - 65.66
2008 - 68.90
2013 - 72.50
2018 - 75.00
पहले चरण में यहां होंगे चुनाव
अंतागढ़(एसटी) भानुप्रतापुर(एसटी) कांकेर(एसटी) केशकाल(एसटी) कोंडागांव(एसटी) नारायणपुर(एसटी) बस्तर(एसटी) जगदलपुर(सामान्य) चित्रकोट(एसटी) दंतेवाड़ा(एसटी) बीजापुर(एसटी) कोंटा(एसटी) पंडरिया(सामान्य) कवर्धा(सामान्य) खैरागढ़(सामान्य) डोंगरगढ़(एससी) राजनांदगांव(सामान्य) डोंगरगांव(सामान्य) खुज्जी(सामान्य) मोहला-मानपुर(एसटी)।
दुनियाभर में सुर्खियां बटोरने वाले बस्तर में इस चुनाव में भी नक्सलियों के खिलाफ लोकतंत्र डटकर खड़ा है। पिछले वर्षों के चुनावों को देखें तो यहां लगातार लोकतंत्र जीत रहा है और दहशत की हार हो रही है। बस्तर संभाग में मतदान का लगातार बढ़ता आंकड़ा इसकी तस्दीक भी कर रहा है।
राज्य ब्यूरो, रायपुर। दुनियाभर में सुर्खियां बटोरने वाले बस्तर में इस चुनाव में भी नक्सलियों के खिलाफ लोकतंत्र डटकर खड़ा है। पिछले वर्षों के चुनावों को देखें तो यहां लगातार लोकतंत्र जीत रहा है और दहशत की हार हो रही है। बस्तर संभाग में मतदान का लगातार बढ़ता आंकड़ा इसकी तस्दीक भी कर रहा है।
हालांकि अब तक ऐसा कोई चुनाव नहीं रहा है जब यहां विधानसभा चुनाव में नक्सली हिंसा की वारदातें नहीं हुई हो। नक्सली अपनी ओर से चुनाव को प्रभावित करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाते रहे हैं मगर इन दशहतगर्द से लड़ने के लिए स्थानीय लोगों में भी जागरुकता धीरे-धीरे आ रही है।
दहशत मचाने के लिए जगह-जगह काटी गईं सड़कें
नक्सली हिंसा के अलावा हत्या, लूटपाट, बम विस्फोट, दहशत मचाने के लिए जगह-जगह काटी गईं सड़कें, सड़कों के नीचे गड़े बम और वूबी ट्रेप, पेड़ों पर टंगे पोस्टर जिनमें चुनाव बहिष्कार की धमकियां आम बात हैं। पिछले चुनावों में भी नक्सलगढ़ में जगह-जगह पोस्टर लगे हैं जिनमें वोट डालने पर अंगुली काटने की धमकी दी गई है।
इन धमकियों के बाद प्रशासन ने अंदरूनी इलाकों के मतदाताओं को अमिट स्याही से छूट देने पर विचार भी किया। नक्सली हर बार यह धमकी देते हैं। बाद में गांव में जाकर वोटरों की अंगुली चेक करते हैं और उनकी पिटाई भी करते हैं। इसके बावजूद बस्तर के सुदूर जंगलों में हर बार वोटिंग होती है।
गनतंत्र पर लोकतंत्र की धमक
पिछले चुनावों में जंगल में कतार लगाकर वोट डालने के लिए खड़े आदिवासी लोकतंत्र के विजय की गाथा लिखते देखे जा चुके हैं। यहां गनतंत्र पर हमेशा लोकतंत्र जीतता रहा है। इस बार भी जीतेगा। यही बस्तर के चुनाव की खासियत है। इसीलिए बस्तर पर सबकी नजर है। इस बार यहां डीआरजी, एसटीएफ, बस्तर फाइटर्स, कोबरा जैसे स्पेशल फोर्स की मदद ली जाएगी। सीआरपीएफ और आइटीबीपी के जवान भी बस्तर में मोर्चा संभालेंगे। सीआरपीएफ पहले से मौजूद अपनी इकाइयों के अलावा अतिरिक्त 100 कंपनियों को तैनात करेगा। यहां नक्सल विरोधी अभियानों के लिए लगभग 25-30 बटालियनों को स्थायी रूप से तैनात किया गया है।
बस्तर संभाग में इस तरह बढ़ा आंकड़ा
वर्ष: मतदान प्रतिशत
1998 - 49.50
2003 - 65.66
2008 - 68.90
2013 - 72.50
2018 - 75.00
पहले चरण में यहां होंगे चुनाव
अंतागढ़(एसटी) भानुप्रतापुर(एसटी) कांकेर(एसटी) केशकाल(एसटी) कोंडागांव(एसटी) नारायणपुर(एसटी) बस्तर(एसटी) जगदलपुर(सामान्य) चित्रकोट(एसटी) दंतेवाड़ा(एसटी) बीजापुर(एसटी) कोंटा(एसटी) पंडरिया(सामान्य) कवर्धा(सामान्य) खैरागढ़(सामान्य) डोंगरगढ़(एससी) राजनांदगांव(सामान्य) डोंगरगांव(सामान्य) खुज्जी(सामान्य) मोहला-मानपुर(एसटी)।
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