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बातों में युद्ध का विरोध, पर असल में व्लादिमीर पुतिन का साथ दे रहा भारत

अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की वेबसाइट के एक लेख में भारत के बयान और उसके फैसलों में अंतर बताया गया है। कई विश्लेषकों के हवाले से इस लेख में कहा गया है कि एक तरफ भारत युद्ध से दूर रहने की बात कर रहा है।

पीएम नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से एससीओ मीटिंग में कहा था कि यह युद्ध का दौर नहीं है। हमें शांति से सभी मसलों का हल करना चाहिए। पीएम नरेंद्र मोदी के इस बयान की काफी तारीफ हुई थी। अमेरिका, फ्रांस समेत दुनिया के कई देशों ने पीएम नरेंद्र मोदी की सीख की सराहना की थी। हालांकि अमेरिकी मीडिया ने पीएम नरेंद्र मोदी की टिप्पणी और भारत के रुख पर सवाल उठाया है। अमेरिकी टीवी चैनल सीएनएन की वेबसाइट के एक लेख में भारत के बयान और उसके फैसलों में अंतर बताया गया है। कई विश्लेषकों के हवाले से इस लेख में कहा गया है कि एक तरफ भारत युद्ध से दूर रहने की बात कर रहा है, जबकि वास्तव में वह पुतिन के साथ ही है।
अमेरिकी मीडिया ने कहा कि एक तरफ पश्चिमी देशों ने क्रेमलिन पर बैन लगाए हैं तो वहीं भारत ने उन्हें नजरअंदाज किया। उससे बड़े पैमाने पर तेल, कोयला और फर्टिलाइजर की खरीद की गई। इससे व्लादिमीर पुतिन को आर्थिक तौर पर ताकत मिली। यही नहीं संयुक्त राष्ट्र में रूस के खिलाफ दो बार लाए गए निंदा प्रस्तावों से भी भारत के दूर रहने पर सवाल उठाए हैं। अमेरिकी मीडिया ने कहा कि भारत के इस कदम से मॉस्को को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वैधता मिली है। यही नहीं रूस में चीन, बेलारूस, मंगोलिया और ताजिकिस्तान के साथ युद्धाभ्यास में भारत भी शामिल हुआ था।
संयुक्त राष्ट्र में भारत की स्थायी प्रतिनिधि रुचिरा कंबोज ने यूक्रेन में चल रही गतिविधियों को परेशान करने वाला बताया था। इसका जिक्र करते हुए अमेरिकी मीडिया ने कहा कि भारत ने यह टिप्पणी जरूर की, लेकिन युद्ध को रोकने की बात नहीं कही। सीएनएन ने कहा कि मौखिक तौर पर भारत ने खुद को रूस से दूर दिखाने की कोशिश की है, लेकिन कारोबारी और राजनीतिक संबंधों में ऐसा नहीं है। यही नहीं विश्लेषक दीपा ओलापल्ली ने कहा कि हाल ही में भारत ने पुतिन से जो दोटूक बात की है, उसकी वजह खाद्यान्न, तेल और फर्टिलाइजर की कीमतों में इजाफा होना है।
यही नहीं भारत और रूस के संबंधों का जिक्र करते हुए सीएनएन ने लिखा कि बीते साल दिसंबर में जब यूक्रेन की सीमा पर रूस ने बड़े पैमाने पर सेना को तैनात किया था, तब व्लादिमीर पुतिन को नई दिल्ली में बुलाया गया था। इस लेख में कहा गया है कि शीत युद्ध के दौर से ही रूस और भारत के संबंध बेहतर बने हुए हैं। आज भी भारत हथियारों की जरूरत के मामले में रूस पर निर्भर करता है।
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