PM नरेंद्र मोदी के गहरे दोस्त थे 'प्रिंस',
शिंजो आबे को भारत से अच्छे रिश्तों और पीएम नरेंद्र मोदी के दोस्त के तौर पर भी याद किया जाए। वह करीब 8 साल तक जापान के पीएम रहे और इस दौरान उन्होंने पूर्वी एशियाई देश को भारत के करीब लाने का काम किया।
Shinzo Abe News: आज सुबह पश्चिमी जापान के नारा शहर में एक रैली को संबोधित करने पहुंचे देश के पूर्व पीएम शिंजो आबे के लिए यह कार्यक्रम आखिरी साबित हुआ। उन पर एक पूर्व नौसैनिक ने पीछे से हमला कर दिया और दो गोलियां दागकर उन्हें मरणासन्न कर दिया। उन्हें अस्पताल ले जाया गया, जहां करीब 6 घंटे तक वह मौत से लड़ते रहे, लेकिन बचाया नहीं जा सका। शिंजो आबे को भारत से अच्छे रिश्तों और पीएम नरेंद्र मोदी के दोस्त के तौर पर भी याद किया जाए। वह करीब 8 साल तक जापान के पीएम रहे और इस दौरान उन्होंने पूर्वी एशियाई देश को भारत के करीब लाने का काम किया था।
शिंजो आबे के दौर में भारत और जापान इतने करीब आए कि वैश्विक मंच पर भी उसकी धमक सुनी गई। इसका असर हम क्वाड के गठन के तौर पर भी देख सकते हैं, जिसे चीन ने एक चुनौती के तौर पर देखा। 21 सितंबर, 1954 में एक राजनीतिक परिवार में जन्मे शिंजो आबे को प्यार से 'प्रिंस' कहा जाता था। उनके दादा नोबुसुके किशि भी जापान के 1967 से 1960 तक देश के प्रधानमंत्री थे। इसके अलावा पिता शिनात्रो आबे भी 1982 से 1986 तक देश के विदेश मंत्री थे। एक बड़े राजनीतिक परिवार से आने के बाद भी शिंजो आबे का जीवन बेहद सादगी से भरा था और शायद यही वजह थी कि वह जापान में काफी लोकप्रिय हुए।
शिंजो आबे ने किया था भारतीय संसद को संबोधित
शिंजो आबे ने एक तरफ 'आबेनॉमिक्स' के जरिए अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए कदम उठाए तो वहीं रक्षा मामलों में भी देश को मजबूती देने का काम किया। उनके आर्थिक फैसले इस कदर लोकप्रिय हुए कि उन्हें आबेनॉमिक्स का नाम ही दे दिया गया। वह भारत के कितने करीब थे, इसे इस बात से ही समझा जा सकता है कि जब पीएम के तौर पर अपने पहले दौरे में वह भारत आए थे तो संसद को संबोधित किया था। इसके बाद 2014 में तो वह गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि भी बने। इसके बाद 2015 और फिर 2017 में भी वह भारत आए थे।
गुजरात के CM रहने के दौरान भी आबे के करीब थे मोदी
पीएम नरेंद्र मोदी और शिंजो आबे के बीच एक पर्सनल केमिस्ट्री भी देखने को मिलती थी। नरेंद्र मोदी जब गुजरात के सीएम थे, तब से ही आबे से उनके रिश्ते थे। पीएम बनने के बाद भी उन्होंने पहले विदेश दौरे के लिए जापान को चुना था और तभी से दोनों के बीच रिश्ते थे। यही नहीं 2016 में दोनों देशों ने असैन्य परमाणु करार भी किया था। इसके अलावा क्योटो से काशी का नारा भी दोनों नेताओं की मुलाकात से ही निकला था। इससे हम समझ सकते हैं कि रणनीतिक मामलों से लेकर इन्फ्रास्ट्रक्चर तक के मामलों में दोनों देशों के बीच रिश्ते मजबूत करने में शिंजो आबे का क्या रोल था।
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