Live TV

राज्य

[States][twocolumns]

देश

[Desh][list]

राजनीति

[Politics][list]

OPINION: संसद में क्यों नहीं है पसमांदा मुसलमानों का स्थान

अल्पसंख्यक राजनीति के नाम पर पसमांदा की सभी हिस्सेदारी अशराफ के झोली में चली जाती है, जबकि पसमांदा की आबादी कुल मुस्लिम आबादी का 90% है। लेकिन सत्ता में उनकी दलखलअंदाजी होती है।


भावनात्मक और जज्बाती मुद्दों से हटकर, रोज़ी रोटी, सामाजिक बराबरी और सत्ता में हिस्सेदारी के मूल अवधारणा के साथ पसमांदा आंदोलन ने इस्लाम/मुस्लिम समाज में व्याप्त छुआछूत, ऊंच-नीच, जातिवाद को एक बुराई मानते हुए इसे राष्ट्र निर्माण में एक बाधा के रूप में देखते हुए, इसका खुलकर विरोध कर मुस्लिम समाज में सामाजिक न्याय की स्थापना पर बल देता आया है।

मुस्लिम समाज मे जहां एक ओर शासक वर्गीय अशराफ मुसलमान (सैयद, शेख, मुग़ल, पठान) अपने आप को दूसरे अन्य मुसलमानों से श्रेष्ठ नस्ल का मानते हैं, वहीं दूसरी ओर देशज पसमांदा (आदिवासी, दलित और पिछड़े) जातियों जैसे वनगुजर, महावत, भक़्क़ो, फ़क़ीर, पमारिया, नट, मेव, भटियारा, हलालखोर (स्वच्छकार), भिश्ती, कंजड़, गोरकन, धोबी, जुलाहा, कसाई, कुंजड़ा, धुनियां आदि के नाम सिर्फ नाम नही बल्कि गालियां और अपमानसूचक शब्द बन गए हैं। इस निरादर की भावना के साथ-साथ अल्पसंख्यक राजनीति के नाम पर पसमांदा की सभी हिस्सेदारी अशराफ के झोली में चली जाती है, जबकि पसमांदा की आबादी कुल मुस्लिम आबादी का 90% है। लेकिन सत्ता में चाहे वो न्यायपालिका, कार्यपालिका या विधायिका हो या मुस्लिम क़ौम के नाम पर चलने वाले इदारे/संस्थान हो, आदि में पसमांदा की भागीदारी लगभग न्यूनतम स्तर पर है।

अब तक के लोकसभा सदस्यों के मुस्लिम प्रतिनिधियों में अशराफ अपनी संख्या के दुगने से भी अधिक भागेदारी प्राप्त किये हुए है जबकि पसमांदा अपनी संख्या के अनुपात में लगभग “नहीं” के बराबर है।

यह बात अब साफ हो चुकी है कि अशराफ वर्ग ने अल्पसंख्यक राजनीति के नाम पर पसमांदा की भीड़ दिखा कर सिर्फ अपना हित साधता रहा है।

अशराफ की राजनीति मजहबी
मज़हबी पहचान की साम्प्रदायिक राजनीति शासक वर्गीय अशराफ की राजनीति है जिससे वो अपना हित सुरक्षित रखता है। अशराफ सदैव मुस्लिम एकता का राग अलापता है। वह यह जनता है कि जब भी मुस्लिम एकता बनेगी तो अशराफ ही उसका लीडर बनेगा। यही एकता उन्हें अल्पसंख्यक से बहुसंख्यक बनाती है, जिसकी वजह से अशराफ को इज़्ज़त, शोहरत,पद और संसद,विधान सभाओं में सम्मानजनक स्थान मिलता है। मुस्लिम एकता अशराफ की जरूरत है और पसमांदा एकता वंचित पसमांदा की ज़रूरत है। अगर पसमांदा एकता बनती है तो पसमांदा को भी उपर्युक्त लाभ मिल सकता है।

तात्कालिक रूप में पसमांदा आंदोलन की प्रमुख मांगें निम्नवत हैं

मुसलमानों द्वारा मुसलमान एवं अल्पसंख्यक नाम पर चलाये जाने सभी संस्थाओं एवं संगठनों जैसे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, वक़्फ़ बोर्ड, बड़े मदरसे, इमारते शरिया, मिल्ली काउंसिल, मजलिसे मुशवरात,अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, इन्ट्रीगल यूनिवर्सिटी आदि में पसमांदा के आबादी के अनुसार उनका कोटा निर्धारित कर आरक्षण की व्यवस्था किया जाय।

पसमांदा को राजनैतिक भागेदारी सुनिश्चित करने के लिए सभी राजनैतिक पार्टियाँ लोक सभा,विधान सभा, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत, ज़िला पंचायत,नगर पालिका, नगर निगम चुनावो में उनकी आबादी के अनुपात में चुनाव में टिकट देना सुनश्चित करें।

ओबीसी आरक्षण में एल०आर० नाइक की रिपोर्ट को लागू किया जाए अथवा कर्पूरी ठाकुर फार्मूले के आधार पर कम से कम तीन वर्गों (अन्य पिछड़ा, अतिपिछड़ा, सर्वाधिक पिछड़ा) में बांटा कर पसमांदा जातियों को अतिपिछड़ा और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग में समाहित किया जाय ताकि कमजोर पसमांदा जातियों को भी आरक्षण का लाभ मिल सके तथा उत्तर प्रदेश में तत्कालीन राजनाथ सिंह की सामाजिक न्याय समिति के अनुरूप आरक्षण उपेक्षित जाति संख्या के आधार पर किया जाये।

धर्मनिरपेक्षता की मूल भावना के आधार पर संविधान की धारा 341 पर 1950 के राष्ट्रपति महोदय के आदेश के पैरा 3 को समाप्त कर सभी धर्मो के दलितों के लिए एक समान रूप से सभी स्तर पर आरक्षण की व्यवस्था किया जाय।

बन गुज्जर,बकरवाल और शेपिया आदि जनजाति की तरह पसमांदा समाज से आने वाले अन्य अनुसूचित जनजातियों की भी पहचान कर एस० टी० आरक्षण में शामिल किया जाय। और बहुत सी पिछड़ी पसमांदा जातियाँ जो ओबीसी आरक्षण में शामिल होने से छूट गयी है उनको ओबीसी आरक्षण में शामिल किया जाय।

केंद्र एवं राज्य सरकारों के अधीन पिछड़ा वर्ग आयोग, अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग में पसमांदा समाज का एक सदस्य स्थायी रूप से नामित किया जाय।

केंद्र एवं राज्य सरकारों के अधीन सभी अल्पसंख्यक प्रतिष्ठानों एवं संस्थानों में पसमांदा की भागीदारी उनकी संख्या के अनुसार सुनिश्चित किया जाय।

अल्पसंख्यकों के विकास एवं कल्याण कारी योजनाओं के लिए केंद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा आवंटित बजट में पसमांदा की आबादी के अनुपात में पसमांदा के लिए बजट आरक्षित किया जाय।

अल्पसंख्यकों के शिक्षा के लिए सरकार द्वारा चलाए जा रहे लोक कल्याणकारी योजनाओं में भी पसमांदा के जनसंख्या के अनुसार सीट एवं छात्रवृति निर्धारित किया जाय

वक्फ विभाग समाप्त कर उसकी सम्पत्तियों को सरकार अपने अधीन कर मुसलमानों के वंचित एवं शोषित वर्गों(देशज पसमांदा) के हित में इस्तेमाल किया जाये

पसमांदा के साथ किसी भी तरह के जातीय/नस्लीय भेदभाव अपशब्द पर एससी एसटी एक्ट के तहत कानूनी कारवाही सुनिश्चित किया जाय।
Post A Comment
  • Facebook Comment using Facebook
  • Disqus Comment using Disqus

No comments :


मिर्च मसाला

[Mirchmasala][threecolumns]

विदेश

[Videsh][twocolumns]

बिज़नेस

[Business][list]

स्पोर्ट्स

[Sports][bsummary]