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अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया रिकॉर्ड लो 79.58 पर

Rupee Vs Dollar: आज पिछले बंद के मुकाबले भारतीय रुपये में 13 पैसे की गिरावट है। शुरुआती कारोबार में स्थानीय मुद्रा में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.55 का उच्च और 79.62 का निचला स्तर देखा गया।


विदेशों में मजबूत अमेरिकी मुद्रा और घरेलू शेयर बाजारों में गिरावट से निवेशकों की धारणा प्रभावित हुई है, जिससे मंगलवार को शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 13 पैसे गिरकर 79.58 पर आ गया। वहीं,यूरो भी अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 1.0051 डॉलर तक गिर गया, जो दिसंबर 2002 के बाद सबसे कमजोर है। डॉलर सूचकांक अक्टूबर 2002 के बाद सबसे अधिक है।

विदेशी मुद्रा व्यापारियों ने कहा कि लगातार विदेशी फंड की निकासी और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी ने रुपये पर पर दबाव बनाए रखा। इंटरबैंक विदेशी मुद्रा में रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.55 पर खुला। इसमें आज पिछले बंद के मुकाबले 13 पैसे की गिरावट है। शुरुआती कारोबार में स्थानीय मुद्रा में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 79.55 का उच्च और 79.62 का निचला स्तर देखा गया।

पिछले सत्र में, रुपया ग्रीनबैक के मुकाबले 79.45 के सर्वकालिक निचले स्तर पर बंद हुआ था। घरेलू इक्विटी के मोर्चे पर, 30 शेयरों वाला सेंसेक्स 259.08 अंक या 0.48 प्रतिशत की गिरावट के साथ 54,136.15 पर कारोबार कर रहा था, जबकि व्यापक एनएसई निफ्टी 83.25 अंक या 0.51 प्रतिशत फिसलकर 16,132.75 पर बंद हुआ।
इस बीच, डॉलर इंडेक्स 0.27 प्रतिशत बढ़कर 108.31 हो गया। वैश्विक तेल बेंचमार्क ब्रेंट क्रूड वायदा 1.48 प्रतिशत की गिरावट के साथ 105.52 डॉलर प्रति बैरल पर आ गया। विदेशी संस्थागत निवेशक सोमवार को पूंजी बाजार में शुद्ध विक्रेता थे। उन्होंने एक्सचेंज के आंकड़ों के अनुसार 170.51 करोड़ रुपये के शेयर बेचे।

आप पर ऐसे पड़ेगा असर

खाद्य तेल और दलहन का बड़ी मात्रा में भारत आयात करता है। डॉलर महंगाई होने से तेल और दाल के लिए अधिक खर्च करने पड़ेंगे जिसका असर इनकी कीमतों पर होगा। ऐसे में इनके महंगा होने से आपके किचन का बजट बिगड़ सकता है। इसके अलावा विदेश में पढ़ाई, यात्रा, दलहन, खाद्य तेल, कच्चा तेल, कंप्यूटर, लैपटॉप, सोना, दवा, रसायन, उर्वरक और भारी मशीन जिसका आयात किया जाता है वह महंगे हो सकते हैं।

दरअसल डॉलर कभी इतना महंगा नहीं था , इसे बाज़ार की भाषा में कहा जा रहा हैं कि रुपया रिकॉर्ड लो पर यानी अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है। मुद्रा का दाम हर रोजाना घटता बढ़ता रहता है। डॉलर की जरूरत बढ़ती चली गई। इसकी तुलना में बाक़ी दुनिया में हमारे सामान या सर्विस की मांग नहीं बढ़ी, इसी कारण डॉलर महंगा होता चला गया।
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