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रूस के खिलाफ लामबंद हुई दुनिया



रूस के खिलाफ लामबंद होते हुए बुधवार को संयुक्त राष्ट्र में अधिकतर देशों ने उससे यूक्रेन से बाहर निकलने की मांग की। रूसी सेना ने यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर में बमबारी फिर शुरू कर दी है और इससे देश की राजधानी पर खतरा बढ़ गया है। रूस ने उसके प्रमुख रणनीतिक बंदरगाहों को भी घेर लिया है। रूस का कहना है कि पिछले सप्ताह शुरू हुई सैन्य कार्रवाई में अभी तक करीब उसके 500 सैनिक मारे गए हैं और लगभग 1,600 जवान घायल हुए हैं। वहीं, यूक्रेन ने उसकी सेना के हताहत सैनिकों की जानकारी साझा नहीं की। बहरहाल, यूक्रेन ने कहा कि दो हजार से अधिक असैन्य नागरिक मारे गए हैं। दोनों ही देशों के दावों की अभी तक पुष्टि नहीं हो पाई है।

यूक्रेन और रूस के राजदूत बृहस्पतिवार को दूसरी बार बेलारूस में मुलाकात करेंगे, ताकि युद्ध को रोकने का कोई उचित समाधान खोजा जा सके। हालांकि, दोनों के बीच सहमति बनने की संभावना कम ही नजर आ रही है।

संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि सात दिन से जारी रूसी आक्रमण में 8,70,000 से अधिक लोग यूक्रेन छोड़ चुके हैं, जिससे यूरोपीय महाद्वीप में शरणार्थी संकट बढ़ गया है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र परमाणु निगरानी एजेंसी के प्रमुख ने आगाह किया कि लड़ाई यूक्रेन के 15 परमाणु रिएक्टर के लिए खतरा बन गई है। अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी के राफेल ग्रॉसी ने कहा कि युद्ध ऐसी जगह हो रहा है, जहां बड़ी परमाणु ऊर्जा सुविधाएं स्थापित हैं। उन्होंने कहा कि वह इसे लेकर बेहद चिंतित हैं।

ग्रॉसी ने कहा, ''जब कोई संघर्ष चल रहा होता है, तो निश्चित रूप से हमले का खतरा होता है या दुर्घटनावश कोई नुकसान होने का खतरा भी बढ़ जाता है।'' रूस ने पहले से ही बंद पड़े चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र पर कब्जा कर लिया है। इस परमाणु संयंत्र में अप्रैल, 1986 में दुनिया की सबसे भीषण परमाणु दुर्घटना हुई थी, जब एक परमाणु रिएक्टर में विस्फोट के बाद रेडियोधर्मी विकिरण फैल गया था।

रूसी सेना ने बुधवार को यूक्रेन के दो रणनीतिक बंदरगाहों की घेराबंदी की और देश के दूसरे सबसे बड़े शहर पर बमबारी शुरू कर दी, जबकि कीव के बाहर एक विशाल बख्तरबंद भी खड़ा दिखाई दिया।

न्यूयॉर्क में, 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा ने रूस से अपने आक्रमण को रोकने और अपने सभी सैनिकों को तुरंत वापस बुलाने की मांग करने के लिए मतदान किया। विश्व शक्तियों और छोटे द्वीप राज्यों ने रूस की निंदा भी की। इस प्रस्ताव के पक्ष में 141 वोट पड़े। पांच देशों ने इसके खिलाफ वोट दिया, जबकि 35 देश मतदान में शामिल नहीं हुए। महासभा के प्रस्ताव कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन दुनिया की राय को प्रतिबिंबित करते हैं।
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